हिन्दू धर्म में त्रियोदशी तिथि भगवान शंकर को समर्पित है। जी हाँ और आप सभी जानते ही होंगे कि हर माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। जी हाँ और इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा की जाती है। ऐसे में इस बार वैशाख माह की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 28 अप्रैल दिन गुरुवार को सुबह 12:23 मिनट से आरंभ होकर 29 अप्रैल दिन शुक्रवार को सुबह 12:26 पर समाप्त होगी। इस वजह से इस बार प्रदोष व्रत गुरुवार के दिन है जिसके कारण यह गुरु प्रदोष व्रत है। जी दरअसल आज के दिन भगवान शंकर की पूजा करने के लिए सबसे उत्तम समय शाम को 06:54 मिनट से लेकर रात्रि के 09:04 मिनट तक है। जी दरअसल प्रदोष व्रत के दिन भगवान शंकर की पूजा प्रदोष काल मे होती है। जी हाँ और जो कि सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व और 45 मिनट के बाद का समय होता है। ऐसे में आज के दिन इस समय भगवान शंकर का अभिषेक करना चाहिए और उन्हें बेलपत्र भी अर्पित करना चाहिए। उसके बाद भगवान शंकर को समर्पित मंत्रों का जप करना चाहिए और प्रदोष व्रत की कथा सुनना चाहिए। अब हम आपको बताते हैं प्रदोष व्रत की कथा। प्रदोष व्रत की कथा- एक नगर में एक ब्राह्मण, उसका बेटा और पत्नी रहती थी। ब्राह्मण की मृत्यु के बाद ब्राह्मणी अपना और अपने बेटे का भरण पोषण करने के लिए अपने बेटे के साथ सुबह ही भीख मांगने निकल पड़ती थी। पूरे दिन उसे भीख में जो कोई कुछ भी दे देता उससे वह अपना और अपने बेटे का गुज़र बसर कर रही थी क्योंकि उसके पास कोई और सहारा भी नही था। एक दिन जब ब्राह्मणी घर लौट रही थी उसे रास्ते मे एक लड़का करहता हुआ दिखा उसने देखा तो वह काफी चोटिल था। ब्राह्मणी को उसकी हालत पर दया आ गयी और वह उसे अपने साथ अपने घर ले आई। वह लड़का और कोई नहीं विदर्भ का राजकुमार था। शत्रुओं ने आक्रमण कर उसके पिता को बंधी बना लिया था और उसके राज्य पर राज करने लगे थे इसलिए उसकी यह स्थिति हो गयी थी। जैसे जैसे समय बीतता गया राजकुमार और ब्राह्मण पुत्र दोनों एक साथ ब्राह्मणी के घर पर रहने लगे। फिर एक एक दिन एक गंधर्व कन्या जिसका नाम अंशुमति था उसने राजकुमार को देखा और उस पर मोहित हो गयी थी। वह राजकुमार पर इस कदर मोहित हुई थी अगले ही दिन अपने माता पिता को राजकुमार से मिलाने ले आयी। उन्हें भी राजकुमार बहुत पसंद आया। कुछ दिन बाद कन्या के माता पिता के स्वप्न में भगवान शंकर ने दोनों के विवाह का आदेश दिया और उसके अनुसार कुछ दिन बाद दोनों का विवाह करा दिया गया। गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने अपना राज्य वापस प्राप्त कर अपने पिता को आज़ाद करा लिया। राजकुमार ने ब्राह्मण पुत्र को अपना प्रधानमंत्री घोषित किया और उसके बाद ब्राह्मणी और उसके पुत्र के दिन बदल गए। यह सब भगवान शंकर के आशीर्वाद से हुआ था। क्योंकि ब्राह्मणी भगवान शंकर की पूजा करती थी और प्रदोष व्रत रखती थी। भक्त इसी कामना के साथ प्रदोष व्रत रखते है जैसे ब्राह्मणी के दिन बदले ऐसे ही उनके भी बदल जाये। जो लोग प्रदोष व्रत रखते है भगवान शंकर उनके दिन फेर देते है। इस वजह से साल में 1 बार होते हैं श्री बांकेबिहारी के चरण दर्शन जब एक हो जाएंगे ये पर्वत तो कोई नहीं कर पाएगा बद्रीनाथ धाम के दर्शन मई आने से पहले देख लें आने वाले मुख्य व्रत-त्योहार की लिस्ट