आज है रवि प्रदोष व्रत, जानिए कैसे हुई थी इसकी शुरुआत

माघ मास में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 30 जनवरी दिन रविवार को प्रदोष व्रत है। आप सभी को बता दें कि रविवार को होने की वजह से इसे रवि प्रदोष व्रत कहते हैं। आप सभी जानते ही होंगे हिन्दू धर्म में शिवरात्रि के बाद भगवान शिव की पूजा के लिये प्रदोष व्रत सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। जी हाँ और इस बात का जिक्र शिव पुराण में भी किया गया है। वहीं इस व्रत के शुरू होने के पीछे की कहानी चंद्र देव से जुड़ी हुई है। जी दरअसल चंद्र देव अपने ससुर के श्राप की वजह के कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गए थे। कहा जाता है ससुर के श्राप से मुक्ति पाने के लिए नारद मुनि के परामर्श पर चंद्र देव ने त्रयोदशी को प्रदोष पूजन किया था। आज हम आपको बताते हैं पूरी कथा।

पौराणिक कथा- चंद्र देव का विवाह प्रजापति दक्ष की 27 नक्षत्र कन्याओं के साथ हुआ था। चंद्र देव बेहद रूपवान थे और उनकी सभी पत्नियों में रोहिणी अत्यंत खूबसूरत थीं। इसलिए चंद्र देव का रोहिणी से विशेष लगाव था। रोहिणी के प्रति चंद्र देव के प्रेम से उनकी अन्य 26 पत्नियां दुखी हो गईं। उन्होंने पिता दक्ष प्रजापति से चंद्र देव की शिकायत की। बेटियों की शिकायत से दुखी होकर दक्ष ने चंद्र देव को श्राप दे दिया। इसके चलते चंद्र देव क्षय रोग से ग्रसित हो गए। धीरे-धीरे श्राप के कारण चंद्र देव की कलाएं क्षीण होने लगीं।

इससे पृथ्वी पर भी बुरा असर पड़ने लगा। जब चंद्र देव अंतिम सांसों के करीब पहुंचे तभी नारद मुनि ने उन्हें भगवान शिव की आराधना करने के लिए कहा। इसके बाद चंद्र देव ने त्रयोदशी के दिन महादेव का व्रत रखकर प्रदोष काल में उनका पूजन किया। व्रत और पूजन से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें मृत्युतुल्य कष्ट से मुक्त कर पुनर्जीवन प्रदान किया, चंद्र देव के शरीर का दोष दूर हो गया। यही कारण है कि इस व्रत को प्रदोष व्रत कहा जाता है।

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