'भारत के रत्न' प्रणब मुखर्जी का यादगार सफ़र

भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. प्रणब मुखर्जी का सफ़र काफी यादगार रहा है. डॉ. प्रणब मुखर्जी ने पश्चिम बंगाल के गांव मिरिटी में 11 दिसंबर 1935 को जन्म लिया था. कांग्रेस के दिग्गज़ नेताओं में वे शुमार रहे हैं. अपनी सोच-समझ से कई बार प्रणब मुखर्जी ने विरोधियों के भी हौंसले पस्त किए हैं. जब वे सक्रिय राजनीति में थे, तब उन्हें 'कांग्रेस के संकटमोचक' के नाम से जाना जाता था. 

 

प्रणब मुखर्जी ने वीरभूम के सूरी विद्यासागर कॉलेज से शिक्षा ग्रहण की थी. बाद में उन्होंने कोलकाता यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में एमए और एलएलबी की डिग्री प्राप्त की. इतना ही नहीं प्रणब मुखर्जी ने पत्रकारिता में भी हाथ आजमाया है. 1969 में बांग्ला कांग्रेस में शामिल होने के साथ ही उनके राजनीतिक करियर का आगाज हो गया. उस समय तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी की नजर उन पर पड़ीं और फिर यहीं से हो गई भारत के एक बेहतरीन व्यक्तित्व और राजनेता की शुरुआत.

डॉ.प्रणब मुखर्जी का राजनीतिक सफ़र...

1969 में जुलाई माह में प्रणब मुखर्जी पहली बार राज्य सभा के लिए चुने गए. इसके पश्चात 'प्रणब दा' 1975, 1981, 1993 और 1999 में भी राज्य सभा का हिस्सा बनें. जबकि इसके बीच साल 1980 से साल 1985 तक राज्य में उन्होंने सदन के नेता के रूप में भी काम किया. 1973 वह साल था जब प्रणब मुखर्जी को पहली बार केंद्रीय मंत्री बनने का अवसर प्राप्त हुआ. इसके बाद जब साल 2004 में केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी और डॉ. मनमोहन सिंह पीएम बने तो एक बार फिर डॉ. 'प्रणब दा' केंद्रीय मंत्री बनाए गए. उनके राजनीतिक करियर में उस समय सबसे बड़ा मोड़ तब आया, जब वे 2012 में भारत के 13वें राष्ट्रपति के रूप में चुने गए. 5 साल तक वे देश के राष्ट्रपति के पद पर कार्य करते रहे. इसके बाद सक्रिय राजनीति से वे पूर्णतः दूर हो गए. 

जब भारत रत्न से सम्मानित हुए प्रणब 'दा'

डॉ. प्रणब मुखर्जी को भारत के सबसे उंचें राष्ट्रीय सम्मान 'भारत रत्न' से भी सम्मानित किया गया है. साल 2019 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों 'प्रणब दा' को 'भारत रत्न' से नवाजा गया. जबकि इससे पहले प्रणब मुखर्जी को देश का दूसरा सबसे ऊंचा राष्ट्रीय सम्मान पद्म विभूषण भी प्रदान किया गया था. 

 

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