महाराष्ट्र में भी 'वोट-जिहाद' की तैयारी..! 180+ NGO की कोशिश-MVA को एकमुश्त मिले मुस्लिम वोट

मुंबई: मुंबई की प्रतिष्ठित टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) में हाल ही में किए गए एक अध्ययन ने उजागर किया है कि मुंबई में रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। इस अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है कि इन अवैध प्रवासियों ने न केवल मुंबई के सामाजिक-आर्थिक ढांचे पर दबाव डाला है, बल्कि राजनीतिक परिदृश्य में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस शोध के प्रकाश में आने के बाद, महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों से पहले मुस्लिम मतदाताओं को बीजेपी के खिलाफ लामबंद करने के लिए 180 से अधिक गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) की सक्रियता सामने आई है। इन एनजीओ का दावा है कि उन्होंने मुंबई में 9 लाख मुस्लिम मतदाताओं को जोड़कर वोटिंग टर्नआउट बढ़ाने में मदद की है।

रिपोर्टों के अनुसार, ये एनजीओ मुस्लिम समुदाय के बीच जाकर उन्हें समझाने और जागरूक करने का कार्य कर रहे हैं। इनका उद्देश्य मुस्लिम मतदाताओं को उनके मतदान अधिकारों का भाजपा के खिलाफ उपयोग करने के लिए प्रेरित करना है। सीधे शब्दों में कहें तो, इन एनजीओ का असली मकसद भाजपा को सत्ता से बाहर निकालना है। ये देखा भी गया है कि, मुस्लिम समुदाय नौकरी, शिक्षा, महंगाई आदि मुद्दों पर वोट नहीं करता, सिर्फ मजहब के नाम पर वोट करता हैं, इसका ताजा उदाहरण जम्मू कश्मीर चुनाव है, जहाँ तमाम शिक्षण संस्थान, मेडिकल सेवाएं, रोज़गार, विकास और सुविधाएं देने के बावजूद मुस्लिम समुदाय ने मजहब के नाम पर वोट किया। इतने सालों से अपनी पसंद की पार्टी को वोट देने के बावजूद मुसलमान पिछड़ा क्यों है? क्योंकि शायद उसे विकास से मतलब ही नहीं, वो आज भी स्कूलों की बजाए मदरसों में शिक्षा लेना पसंद करता है, क्योंकि वहां मजहब है। और जिन स्कूल-कॉलेजों में मजहब नहीं है, वहां हिजाब-नमाज आदि की इजाजत मांगकर वहां भी मजहब को लाना चाहता है। TV डिबेट्स में आपने सुना ही होगा, जब मुस्लिम विद्वानों से पुछा जाता है कि उनके लिए संविधान पहले है या कुरान? तो वे खुलकर कुरान कहते हैं। राजनीति में भी इस समुदाय की सोच ऐसी ही है, जो मजहब के मुताबिक काम करेगा, उस पार्टी को वोट मिलेगा। यानी, जो वक्फ, तीन तलाक़, 370 आदि को कायम रखने की बात करेगा, उसे मुस्लिम समुदाय का वोट मिलेगा, अब इसमें NGO भी भूमिका निभाने लगे हैं। इसमें विदेशी फंडिंग भी पूरी तरह संभव है और मुस्लिम आबादी बढ़ने के साथ ही ये खेल और ज्यादा खतरनाक हो गया है।  

 

TISS द्वारा प्रकाशित अध्ययन में महाराष्ट्र के इलाकों में जनसांख्यिकी बदलाव पर विशेष ध्यान दिया गया है। मुंबई में 1961 में हिंदुओं की आबादी 88% थी, जो 2011 में घटकर 66% रह गई। वहीं, मुस्लिम जनसंख्या 8% से बढ़कर 21% तक पहुँच गई। इस अध्ययन के अनुसार, यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो 2051 तक हिंदू आबादी 54% से कम और मुस्लिम आबादी लगभग 30% तक बढ़ सकती है। यह वृद्धि महाराष्ट्र के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में गहरे परिवर्तन की ओर इशारा करती है।

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि बांग्लादेश और म्यांमार से आने वाले अवैध प्रवासियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। विशेष रूप से रोहिंग्या और बांग्लादेशी समुदाय के लोग झुग्गी क्षेत्रों में बस रहे हैं, जिससे मुंबई के सामाजिक और आर्थिक ढांचे पर दबाव बढ़ रहा है। स्थानीय लोगों और अप्रवासी समुदायों के बीच आर्थिक असमानताओं के कारण समाजिक तनाव, हिंसा, महिलाओं की तस्करी और देह व्यापार में भी वृद्धि हो रही है। इन समस्याओं ने मुंबई के सामाजिक ताने-बाने को कमजोर कर दिया है, जिससे समुदायों के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं।

लोकसभा चुनावों में एनजीओ की गतिविधियों ने स्पष्ट प्रभाव दिखाया। मुस्लिम क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। शिवाजी नगर, मुम्बादेवी, बायकुला और मालेगाँव सेंट्रल जैसे क्षेत्रों में मतदान दर 60% से अधिक रही, जबकि वहां गैर-मुस्लिम समुदाय भी था, जिसने मतदान में उतनी दिलचस्पी नहीं दिखाई। मुस्लिम समुदाय के इस उच्च मतदान दर का सीधा असर चुनाव परिणामों पर पड़ा, जहां विपक्षी पार्टियों ने भाजपा के खिलाफ मजबूत प्रदर्शन किया। शिवसेना (शिंदे गुट) ने 7 सीटें जीतीं, जबकि भाजपा ने 9 सीटें हासिल कीं। एनसीपी, कॉन्ग्रेस और उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने मुस्लिम और वामपंथी समर्थन प्राप्त करते हुए क्रमशः 8, 13 और 9 सीटें जीतीं।

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों से पहले, मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट करने के लिए एनजीओ की सक्रियता फिर से बढ़ गई है। इन संगठनों ने मुस्लिम समुदाय के बीच विश्वास पैदा करने के लिए सैंकड़ों बैठकों, सूचना सत्रों और सामुदायिक कार्यक्रमों का आयोजन किया है। सोशल मीडिया पर वायरल हुई वीडियो में दिखाया गया है कि कैसे मुस्लिमों को भाजपा के खिलाफ भड़काया जा रहा है और उन्हें इंडी गठबंधन के समर्थन में वोट देने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।

 

हर बार की तरह, इस बार भी मजहबी उलेमा इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, जो अपने अनुयायियों को विशिष्ट उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान करने की सलाह दे रहे हैं। उदाहरण के लिए, पुणे, शिरुर, बारामती और मावल निर्वाचन क्षेत्रों में कॉंग्रेस, एनसीपी (शरद पवार) और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के उम्मीदवारों को ही वोट देने की सलाह दी जा रही है। मौलाना सज्जाद नोमानी जैसे नेताओं ने मुस्लिम समुदाय को भाजपा के खिलाफ वोट डालने के लिए प्रेरित किया है, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि धार्मिक आधार पर वोट बैंक की राजनीति कैसे संचालित की जा रही है।

इन संगठित प्रयासों का प्रत्यक्ष असर चुनाव परिणामों पर पड़ा। मुस्लिम क्षेत्रों में उच्च मतदान दर ने विपक्षी पार्टियों को लाभ पहुंचाया। शिवसेना ने शिवाजी नगर, मुम्बादेवी, बायकुला और मालेगाँव सेंट्रल जैसे क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन किया, जबकि बीजेपी को अपेक्षाकृत कम सीटें प्राप्त हुईं। यह दर्शाता है कि एनजीओ की रणनीति कितनी प्रभावी साबित हो सकती है, खासकर तब जब मतदाताओं को धार्मिक और सांप्रदायिक आधार पर प्रेरित किया जाए।

महाराष्ट्र में आगामी विधानसभा चुनावों में भी मुस्लिम मतदाताओं की संगठित रणनीति जारी रहने की संभावना है। यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो यह राज्य की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है। राजनीतिक पार्टियों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा और सामुदायिक आधार पर वोट बैंक की राजनीति समाज में विभाजन को बढ़ावा दे सकती है। इसके अलावा, अवैध प्रवासियों की बढ़ती संख्या और उनके सामाजिक-आर्थिक प्रभाव से राज्य की सामाजिक संरचना पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है।

मुंबई में बढ़ती रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों का प्रभाव और महाराष्ट्र में मुस्लिम मतदाताओं को लामबंद करने के लिए एनजीओ की सक्रियता, दोनों ही घटनाएं राज्य की सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देती हैं। TISS की रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि जनसांख्यिकी में हो रहे बदलाव भविष्य में चुनाव परिणामों पर गहरा असर डाल सकते हैं। राजनीतिक पार्टियों को इस नई वास्तविकता के अनुसार अपनी रणनीति बनानी होगी, ताकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया को संतुलित रखा जा सके और समाज में सामंजस्य बनाए रखा जा सके। साथ ही, अवैध प्रवासियों की समस्या का समाधान करने के लिए ठोस कदम उठाना आवश्यक है, ताकि सामाजिक तनाव को कम किया जा सके और राज्य की समग्र प्रगति सुनिश्चित की जा सके।

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