नई दिल्ली: कांग्रेस नेता राहुल गांधी की सदस्यता रद्द होने पर सियासी संग्राम मचा हुआ है। इस मामले को लेकर राजनीति अपने चरम पर है, विपक्ष जहाँ राहुल की सदस्यता ख़त्म करने को लोकतंत्र की हत्या और सरकार की तानाशाही बता रहा है, वहीं, सत्ताधारी नेता इसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन बता रहे हैं। इसी बीच बंगाल के एक प्रोफेसर की कहानी सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है, जिन्होंने अपने जीवन के 11 साल प्रताड़ना झेली, उनका कसूर सिर्फ इतना था कि, उन्होंने सोशल मीडिया पर बंगाल की सीएम ममता बनर्जी का एक कार्टून फॉरवर्ड कर दिया था। बता दें कि, इस मामले में प्रोफेसर अंबिकेश मोहपात्रा के साथ PWD के रिटायर्ड इंजीनियर सुब्रत सेनगुप्ता को भी अरेस्ट किया गया था। सेनगुप्ता मुकदमा लड़ते-लड़ते साल 2019 में 80 वर्ष की आयु में दुनिया छोड़ गए। हालाँकि, जिस IT एक्ट की धारा 66A के तहत बंगाल पुलिस ने प्रोफेसर को अरेस्ट किया गया था, उसे सर्वोच्च न्यायालय ने 8 वर्ष पहले ही खत्म कर दिया है, फिर भी मुकदमा चलता रहा। बता दें कि, इसी साल जनवरी में पश्चिम बंगाल की जादवपुर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अंबिकेश महापात्रा को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और मुकुल रॉय के संबंध में कथित तौर पर मानहानिकारक कार्टून फॉरवर्ड करने के आरोप में बाइज्जत बरी कर दिया गया था। दरअसल, गिरफ्तार किए गए प्रोफेसर अंबिकेश महापात्रा 11 वर्षों तक कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद इस मामले में बाइज्जत बरी हुए थे। प्रोफेसर ने इसे लोकतंत्र की जीत बताया था। हालाँकि, मीडिया में इस खबर को उतनी जगह नहीं मिली, जितनी मिलना चाहिए थी। बता दें कि, वर्ष 2012 में सीएम ममता बनर्जी, मुकुल रॉय और दिनेश त्रिवेदी को लेकर अंबिकेश महापात्रा ने एक मीम सोशल मीडिया पर साझा कर दिया था। सत्यजीत रे की सोनार केला पर आधारित कार्टून वाले ईमेल सीक्वल को महापात्रा ने अपने हाउसिंग सोसाइटी के ईमेल ग्रुप के सदस्यों को सेंड किया था, जिसके बाद उनके खिलाफ ममता बनर्जी सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66ए और आईपीसी की धाराओं के तहत केस दर्ज कर लिए थे। प्रोफेसर को 12 अप्रैल 2012 को अरेस्ट किया गया और जेल में उन्हें पीटा भी गया। मगर मामला चलता रहा, 11 साल लम्बी चली लड़ाई के बाद 20 जनवरी 2023 को अलीपुर कोर्ट ने प्रोफेसर को बाइज्जत बरी कर दिया है। लेकिन, इस पूरे मामले में गौर करने वाली बात ये है कि, प्रोफेसर को अपनी लड़ाई खुद ही लड़ना पड़ी, न तो किसी मीडिया चैनल ने ममता सरकार के खिलाफ उनकी मदद की और न ही किसी राजनेता ने उनका पक्ष जानने की कोशिश की। बता दें कि, उस समय केंद्र में कांग्रेस की ही सरकार थी। बरी होने के बाद प्रोफेसर अम्बिकेश ने 11 साल लम्बी चली लड़ाई को लेकर कहा था कि, एक तरफ मनी, मसल्स, पावर और प्रशासन है, इसके साथ ही उनकी पुलिस और उनकी सरकार है। लड़ाई तो मुश्किल होनी ही थी। अलीपुर कोर्ट के चक्कर, पैसे की बर्बादी और सबसे बड़ी बात तो ये कि मेरे इतने साल बर्बाद हो गए। क्या एक आम आदमी के लिए इससे अधिक बड़ा नुकसान कुछ हो सकता है? 'राहुल गांधी को पिछड़ों के अपमान की मिली है सजा', मोदी ने बोला जमकर हमला 'महागठबंधन बनते ही CBI को हुआ दिव्य ज्ञान', तेजस्वी से पूछताछ पर बोली JDU 'मेरे भाषण से डर गए पीएम मोदी..', प्रेस वार्ता में बोले राहुल गांधी- मैं तपस्या करता रहूंगा