'मौलवियों-इमामों को वेतन, तो हमें क्यों नहीं..', क्या पुजारियों-ग्रंथियों की यह मांग गलत ?

नई दिल्ली: अक्सर आपने राजनेताओं से मुंह से सुना होगा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और हमारा संविधान हर धर्म-समुदाय के व्यक्ति को एक सामान अधिकार प्रदान करता है। लेकिन जब इस समानता के अधिकार को जमीन पर लागू करने की बात आती है, तो यही राजनेता, संविधान-धर्मनिरपेक्षता सब भूल जाते हैं, उन्हें याद रहता है तो बस अपना वोट बैंक, जिसे खुश रखने के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं। अब ऐसी ही एक समानता की मांग को लेकर पुजारी दिल्ली के सीएम और आम आदमी पार्टी (AAP) सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के घर के बाहर धरने पर बैठ गए हैं।

धरना प्रदर्शन कर रहे पुजारियों की मांग है कि जब मौलवियों-इमामों, मुअज्जिनों को सरकारी पैसे से वेतन दिया जा सकता है तो उन्हें क्यों नहीं? अपनी इस मांग को लेकर आज यानी मंगलवार (7 फ़रवरी) को हजारों की संख्या में पुजारी, सीएम केजरीवाल के घर के सामने धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। पुजारियों का कहना है कि दिल्ली सरकार जब तक पुजारियों को वेतन नहीं देती और सनातन धर्म की रक्षा के लिए कार्य नहीं करती, तब तक ये धरना-प्रदर्शन इसी तरह जारी रहेगा।

इमामों को वेतन तो पुजारी-ग्रंथि को क्यों नहीं :-

बता दें कि, दिल्ली की मस्जिदों में इमामों और मुअज्जिनों को वेतन देने का मुद्दा इससे पहले भी उठ चुका है। दिल्ली में हुए MCD चुनावों के दौरान भाजपा ने यह मुद्दा उठाया था। उस समय मौलवियों-इमामों के साथ ही मंदिरों को पुजारियों और गुरुद्वारे के ग्रथियों को भी मासिक सैलरी देने की मांग की गई थी। बता दें कि दिल्ली वक्फ बोर्ड की पंजीकृत लगभग 185 मस्जिदों के 225 इमाम और मुअज्जिनों को सरकार द्वारा वेतन दिया जाता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, इमाम को प्रति माह 18 हजार रुपये और मुअज्जिनों को प्रतिमाह 14 हजार रुपये के हिसाब से वेतन मिलता हैं। इसके अतिरिक्त दिल्ली वक्फ बोर्ड में गैर-पंजीकृत मस्जिदों के इमामों को 14 हजार और मुअज्जिनों को भी 12 हजार रुपये हर महीने दिए जाते हैं। हालाँकि, किसी भी मंदिर के पुजारी, या गुरूद्वारे के ग्रंथि को सरकार की तरफ से कोई पैसा नहीं दिया जाता। बता दें कि, मस्जिद के इमामों को वेतन वक्फ बोर्ड द्वारा दिया जाता है, लेकिन इस वक़्फ़ बोर्ड को प्रदेश सरकार ही अनुदान देती है।  

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