अपने बयान में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालतों को सजा देने के पहलुओं को हल्के में नहीं लेना चाहिए. सजा तय करते वक्त अदालत को ध्यान रखना चाहिए कि इसका समाज पर निर्णायक असर पड़ता है. प्राकृतिक न्याय का मूल सिद्धांत है कि जज को किसी नतीजे पर पहुंचने के लिए कारण बताना चाहिए. सजा कम या ज्यादा नहीं, बल्कि वाजिब होनी चाहिए. चुनाव परिणाम Live: महाराष्ट्र में 107 तो हरियाणा में 47 सीटों पर आगे चल रही भाजपा, कांग्रेस पिछड़ी मीडिया रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस मोहन एम शांतनगौदर और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा, बड़ी संख्या में ऐसे मुकदमे दायर होते हैं, जो निचली अदालतों द्वारा अपर्याप्त या गलत सजा देने से संबंधित होते हैं. कुछ मामले में लापरवाह तरीके से सजा दी जाती है, जिसे लेकर हम आगाह करते रहे हैं. नीतीश ने दिल्ली और बिहार को लेकर सरकार के सामने रखी अपनी मांग इसके अलावा पीठ ने कहा, सजा तय करते वक्त अपराध की योजना, अपराध में इस्तेमाल हथियार, आरोपी की भूमिका, पीड़ित की स्थिति, अपराधी की उम्र व लिंग, आर्थिक स्थिति, आपराधिक पृष्ठभूमि, आरोपी की मनोस्थिति, आरोपी के सुधरने की गुंजाइश, अपराध की गंभीरता आदि बातों पर गौर किया जाना चाहिए. सजा तय करने को लेकर जज को स्वाधीनता होती है लेकिन जरूरी यह है कि इसे सैद्धांतिक तरीके से अंजाम दिया जाए. धर्मशाला और पच्छाद विधानसभा उपचुनाव की मतगणना शुरू, जाने जानिए चौटाला परिवार की प्रथम महिला विधायक के बारें में केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने लुप्तप्राय श्रेणी के इस प्राणी को बचाने के लिए चलाने वाले अभियान