अहमदाबाद: गुजरात की सूरत कोर्ट ने कांग्रेस के लोकसभा सांसद राहुल गांधी को मानहानि केस में 2 साल की सजा सुनाई है। हालांकि, कांग्रेस नेता को फ़ौरन जमानत भी मिल गई है। राहुल को 30 दिन का समय दिया गया है, ताकि वे ऊपरी अदालत में अपील कर सकें। हालाँकि, इससे पहले ही संसद के नियमों के अनुसार, राहुल गांधी लोकसभा में अयोग्य घोषित हो चुके हैं और उनकी सदस्यता समाप्त हो चुकी है। दरअसल, कानून कहता है कि यदि किसी को दो साल के लिए किसी अपराध में दोषी ठहराया जाता है, तो उसकी लोकसभा सीट रिक्त हो जाएगी। हालाँकि, अब राहुल गांधी की सदस्यता जाने के बाद 10 वर्ष पुराना वो वाक्या वापस चर्चाओं में आ गया है, जब राहुल गांधी ने पत्रकारों से भरी प्रेस वार्ता में संसद का अध्यादेश देश फाड़ दिया था। उस वक़्त यदि राहुल गांधी ऐसा नहीं करते तो आज ये सदस्यता निरस्त नहीं होती। दरअसल, शीर्ष अदालत का फैसला बदलने के लिए वर्ष 2013 में मनमोहन सिंह सरकार एक अध्यादेश लेकर आई थी। सरकार सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को निष्किय करना चाहती थी। बता दें कि, शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि दोषी पाए जाने पर सांसदों और विधायकों की सदस्यता निरस्त कर दी जाएगी। कांग्रेस सरकार के इस अध्यादेश पर विपक्षी दलों ने जमकर हंगामा किया था। हंगामें पर सफाई देने के लिए कांग्रेस ने प्रेस वार्ता बुलाई, जिसमें राहुल गांधी भी पहुंच गए थे। राहुल गांधी ने प्रेस वार्ता में पहुंचते ही अपनी ही सरकार के इस अध्यादेश को एकदम बकवास बताया था और देखते ही देखते अध्यादेश को फाड़ डाला था। प्रेस वार्ता में उपस्थित कांग्रेस के नेताओं को इसका अंदाजा बिल्कुल नहीं था और सभी हैरान रह गए थे। राहुल गांधी ने इस अध्यादेश की जमकर आलोचना की थी। इस वक़्त प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अमेरिका दौरे पर थे। राहुल गांधी का कहना था कि सियासी कारणों के चलते हर पार्टी यही काम करती है, जिसकी अब आवश्यकता नहीं है। इसे तत्काल प्रभाव से बंद होना चाहिए। दरअसल, राहुल का कहना था कि यदि देश में भ्रष्टाचार से लड़ना है, तो सियासी दलों को ऐसे समझौते तत्काल बंद करने चाहिए। राहुल गांधी ने ऐसा बयान इसलिए भी दिया था, क्योंकि कांग्रेस पार्टी उस वक़्त भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी हुई थी। कॉमनवेल्थ गेम्स, कोयला घोटाला जैसे बड़े घोटालों के आरोप मनमोहन सरकार पर थे। राहुल गांधी के अध्यादेश फाड़ने के बाद मनमोहन सिंह सरकार बैकफुट पर आ गई थी और अध्यादेश को वापस लेना पड़ा था। बता दें कि, सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से पहले दोषी सांसदों और विधायकों को 3 महीने की छूट मिल जाती थी और यही नियम मनमोहन सरकार के अध्यायदेश में भी था। ये रियायत लोक प्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (4 ) के तहत मिलती थी। रियायत मिलने के बाद दोषी होने के बाद भी सांसदों और विधायकों को ये मोहलत मिल जाती थी और ऊपरी कोर्ट में अपील कर सकता था। साथ ही साथ लोअर कोर्ट के फैसले के खिलाफ स्टे ले सकता था, जिससे उसकी सदन में सदस्यता निरस्त होने से बच जाती थी। यदि, राहुल गांधी उस समय सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ लाए गए मनमोहन सरकार के अध्यादेश को न फाड़ते, तो आज दोषी होने के बावजूद उन्हें तीन महीने की रियायत मिल जाती।आज शायद राहुल गांधी को वो 10 साल पुरानी गलती याद आ रही होगी। राहुल गांधी के किन बयानों पर मचा है बवाल, जानिए उनमे कितना सच-कितना झूठ ? 'राहुल गांधी अपराधी नहीं तो सात बार जमानत पर क्यों?': नरोत्तम मिश्रा विपक्षी नेताओं को 'गिरफ़्तारी' का डर ? 14 पार्टियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे सीएम केजरीवाल