'जो काले किसानों...', राहुल गांधी की जुबान फिर फिसली, कृषि कानूनों पर कर रहे थे पॉलिटिक्स, Video

चंडीगढ़: कांग्रेस के लोकसभा सांसद राहुल गाँधी भारत जोड़ो यात्रा के तहत इस समय पंजाब में हैं। इस दौरान का राहुल गाँधी का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वह केंद्र द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के बारे में बात करते नज़र आ रहे हैं। राहुल गाँधी के इस छोटे से वीडियो क्लिप में कह रहे हैं कि, 'जो काले किसान के खिलाफ कानून आए थे, तीन कानून…।' इसमें मंच से राहुल गाँधी ‘काले कानून’ कहने के बजाय ‘काले किसान’ कहते दिखाई दिए।

 

राहुल गांधी का यह वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। राहुल के इस बयान को लेकर केंद्र की सत्ताधारी पार्टी भाजपा के नेता उन पर सवाल खड़े कर रहे हैं। वहीं, दूसरी तरफ सोशल मीडिया यूज़र्स राहुल गाँधी को ट्रोल कर रहे हैं। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने इस वीडियो को शेयर करते हुए कहा है कि, 'राजस्थान के किसानों को दस दिनों में कर्जमाफी नहीं देकर धोखा देने और उन्हें बिजली से वंचित करने के बाद (जैसा कि राजस्थान में उनके अपने मंत्री ने स्वीकार किया है) अब राहुल गाँधी किसानों को “काले किसान” कहते हैं।'

 

वहीं, भाजपा के IT सेल चीफ अमित मालवीय ने कहा है कि, 'काले किसान? ये किसानों का अपमान है, राजस्थान से छत्तीसगढ़ तक, कांग्रेस ने किसानों को बदहाली के कागार पर लाकर खड़ा कर दिया है।' मध्य प्रदेश भाजपा के प्रदेश मंत्री राहुल कोठारी ने राहुल गांधी पर तंज कसते हुए कहा है कि, 'काले किसान !!! गोरा तो एक ही है ‘रॉबर्ट वाड्रा‘।'

कृषि कानूनों पर कैसे खेली गई पॉलिटिक्स:- 

बता दें कि, किसानों की स्थिति में सुधार करने की मंशा से 2019 में सरकार कृषि कानून लेकर आई थी। लेकिन राजनेताओं द्वारा अपनी सियासी रोटियां सेंकने के लिए, 'अंबानी सबको गुलाम बना लेगा, अडानी सभी किसानों की जमीन खरीद लेगा' का भ्रम फैलाकर किसानों को खेतों से निकालकर सड़क पर उतार दिया गया। बात सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची, कोर्ट ने एक समिति का गठन कर कृषि कानूनों की समीक्षा करने के काम पर लगा दी। सुप्रीम कोर्ट की इस कमिटी में कृषि विशेषज्ञ अशोक गुलाटी, डॉ। प्रमोद कुमार जोशी और अनिल घनवट सदस्य थे। सर्वोच्च न्यायालय ने 4 सदस्यीय टीम बनाई थी, लेकिन किसान नेता भूपिंदर सिंह मान ने इससे अपने आप को अलग कर लिया था।

 

सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट जमा होने के बाद निरंतर इसे सार्वजनिक किए जाने की मांग होने लगी, लेकिन रिपोर्ट को जनता के सामने पेश नहीं किया गया। आखिरकार, 700 किसानों की मौत और 12 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होने के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि कानून वापस ले लिए। उनके शब्द थे, 'ये कानून किसानों के हित के लिए लाए गए थे और देश हित में वापस लिए जा रहे हैं।' समय गुजरा और सबकुछ सामान्य होने लगा, आख़िरकार 21 मार्च 2021 को सुप्रीम कोर्ट में जमा हुई रिपोर्ट मार्च 2022 में सामने आई, जिसमे बताया गया था कि, देश के 86 फीसद किसान संगठन इन कानूनों के पक्ष में हैं। हमें ग्रेटा, रेहाना, जैसे लोगों के ट्वीट और टूलकिट भर-भरकर दिखाए गए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्ट दबा दी गई। किसान आंदोलन के बाद चुनाव हुए और उसमे भी यूपी में विपक्ष को करारी हार मिली। बता दें कि, आंदोलन में यूपी के कुछ किसान भी शामिल थे। इस चुनावी नतीजे के बाद किसान आंदोलन में शामिल एक नेता योगेंद्र यादव ने कहा था कि, यूपी चुनाव के लिए हमने तो पिच तैयार करके दी थी, पार्टियां उसपर अच्छी गेंदबाज़ी नहीं कर पाई। इससे यह भी सिद्ध हो गया कि, ये आंदोलन किसान हित में कम और राजनेताओं के हित में अधिक था। किसानों और कृषि कानूनों के नाम पर यही काली सियासत अब भी जारी है।  

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