सितंबर में अमेरिका जाएंगे नेता विपक्ष राहुल गांधी ! पिछले विदेशी दौरों पर हो चुका है विवाद

नई दिल्ली: कांग्रेस नेता राहुल गांधी के सितंबर में अमेरिका जाने की संभावना है, जहां वे भारतीय प्रवासियों, छात्रों और अमेरिकी सांसदों से मुलाकात कर सकते हैं। लोकसभा में विपक्ष के नेता (LoP) बनने के बाद यह उनकी पहली विदेश यात्रा होगी। सूत्रों के मुताबिक, राहुल गांधी सितंबर के दूसरे सप्ताह में अमेरिका के लिए रवाना हो सकते हैं और वहां 8 से 9 दिनों तक रह सकते हैं। उनका यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार का दौर चरम पर है।

उल्लेखनीय है कि, 2014 से 2024 तक लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद खाली रहा था, क्योंकि उस समय कोई भी विपक्षी दल इस पद के लिए पर्याप्त सांसदों की संख्या नहीं जुटा पाया था। हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी की सीटों की संख्या 99 पहुंचने के बाद, 25 जून, 2024 को राहुल गांधी को लोकसभा में विपक्ष का नेता नियुक्त किया गया। अब नेता विपक्ष बनने के बाद ये उनका पहला विदेशी दौरा होने जा रहा है। लेकिन इससे पहले बीते 10 सालों में राहुल, जब जब विदेश गए हैं, वहां दिए गए उनके बयानों से भारत में जमकर सियासी बवाल मचा है। 

राहुल गांधी के विदेश दौरे और विवाद:-

बता दें कि, राहुल गांधी का चुनावी मौसम के दौरान या ऐसे समय जब उनकी पार्टी को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत है, जनता को बताए बिना 'गुप्त' छुट्टियों पर जाने का इतिहास रहा है। वे विदेश किसलिए जाते हैं, वहां जाकर वे किससे मिलते हैं ? ये तमाम बातें मीडिया में भी नहीं आती। बाद में उनकी मुलाकातों की तस्वीरें जब सोशल मीडिया के जरिए सामने आती हैं, तब उनपर बवाल होता है, क्योंकि अधिकतर समय कोई न कोई भारत विरोधी शख्स उनके साथ नज़र आ ही जाता है। 

अप्रैल 2022 में, चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर द्वारा पार्टी में शामिल होने के कांग्रेस के प्रस्ताव को अस्वीकार करने के बाद, राहुल गांधी अचानक गायब हो गए थे। रिपोर्टों में बताया गया था कि गांधी 10 दिनों से अधिक समय तक लापता रहे और उनसे संपर्क नहीं हो सका, जिससे पार्टी को संकट के दौरान अकेले ही कार्रवाई करनी पड़ी। इससे पहले दिसंबर 2021 में, वायनाड के सांसद 2022 में होने वाले 5 राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों के लिए अभियान और रैलियों से पहले इटली की निजी यात्रा पर निकल गए थे। जिसके कारण पार्टी को पंजाब में राहुल गांधी की पहले से निर्धारित रैली को स्थगित करने के लिए मजबूर होना पड़ा था। 

दिवाली 2021 से ठीक पहले, राहुल गांधी फिर से बिना किसी सूचना के लापता हो गए थे, कथित तौर पर लंदन चले गए थे। उसी वर्ष 5 नवंबर को, यह बताया गया कि गांधी 'लंबी छुट्टी' पर थे। यहाँ तक कि, संसद में बोलने न देने का आरोप लगाने वाले राहुल गांधी, संसद में शीतकालीन सत्र शुरू होने से ठीक पहले अचानक विदेश निकल गए थे और लगभग एक महीने बाद लौटे। उस वक्त भाजपा ने राहुल गांधी पर कटाक्ष किया था और उनकी लंदन यात्रा पर सवाल उठाए थे। सितंबर 2021 में, जब पंजाब में कांग्रेस पार्टी अमरिंदर सिंह के इस्तीफे से संकट का सामना कर रही थी, तब गांधी परिवार शिमला में छुट्टियां मना रहा था।

दिसंबर 2020 में राहुल गांधी अपनी पार्टी के 136वें स्थापना दिवस का कार्यक्रम छोड़कर इटली निकल लिए थे। उनकी पार्टी के नेता एक स्पष्टीकरण पर सहमत नहीं हो सके और आगे चलकर खुद को मीडिया के सवालों का निशाना बना गए। अक्टूबर 2019 में, हरियाणा और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से 15 दिन पहले, राहुल गांधी कथित तौर पर बैंकॉक के लिए रवाना हो गए थे। उसी साल जून में, संसदीय चुनावों की मतगणना से पहले, राहुल गांधी UPA अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा आयोजित एक महत्वपूर्ण बैठक में शामिल नहीं हुए और छुट्टी मनाने के लिए लंदन चले गए।

राहुल गांधी ने अपनी 'गुप्त' विदेश यात्राओं के लिए SPG सुरक्षा छोड़ दी :-

बता दें कि, नवंबर 2019 में, भाजपा नेता राजनाथ सिंह ने राहुल गांधी से उनकी विदेश यात्राओं पर विशेष सुरक्षा समूह (SPF) कर्मियों को अपने साथ नहीं ले जाने के फैसले के बारे में सवाल किया था। राजनाथ सिंह ने कहा था कि, 'पिछले दो वर्षों में, राहुल गांधी छह विदेशी यात्राओं पर 72 दिनों के लिए बाहर गए थे। लेकिन उन्होंने SPG का सुरक्षा कवर नहीं लिया। उन्होंने SPG कवर क्यों नहीं लिया? हम जानना चाहते हैं कि राहुल गांधी SPG सुरक्षा प्राप्त होने के बावजूद विदेशी दौरों पर एसपीजी को साथ न ले जाकर क्या छिपाने की कोशिश कर रहे हैं।'

इस तरह का जानबूझकर उठाया गया कदम कथित तौर पर SPG अधिनियम का उल्लंघन है। भारत और विदेश दोनों में सुरक्षा नियमों के बार-बार उल्लंघन के मद्देनजर, 2019 में उनकी SPG सुरक्षा रद्द कर दी गई और उन्हें Z CRPF सुरक्षा कवर प्रदान किया गया था।

राहुल गांधी और विदेश में भारत विरोधी लोगों के साथ उनकी बैठकें :-

उल्लेखनीय है कि, राहुल गांधी 2023 में भी 10 दिवसीय अमेरिका दौरे पर गए थे, जहां उन्होंने नेशनल प्रेस क्लब, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी और 'थिंक टैंक' के साथ कथित तौर पर भारत और अमेरिका के बीच संबंधों पर चर्चा की थी। हडसन इंस्टीट्यूट ने इन "थिंक टैंक" के साथ गहन बातचीत में राहुल गांधी की तस्वीरें ट्वीट कीं थीं। हडसन इंस्टीट्यूट में हुए इस कार्यक्रम में ''सुनीता विश्वनाथ'' राहुल गांधी के साथ बैठी नज़र आईं थीं। अब गौर कीजिए कि, सुनीता विश्वनाथ HfHR की सह-संस्थापक हैं, जिन्होंने इंडियन अमेरिकन मुस्लिम कॉउन्सिल (IAMC) के साथ पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक पत्र पर हस्ताक्षर भी किए हैं।

इन्फो-वॉरफेयर और साइ-वॉर की जांच OSINT डिसइन्फो लैब ने एक जांच की थी, जिसमें खुलासा हुआ था कि सुनिया विश्वनाथ का 'हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स (HfHR)' 'हिंदू बनाम हिंदुत्व' की भ्रामक कहानी को बढ़ावा दे रहा था। इसी संगठन को 'डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व' (वैश्विक हिंदुत्व को ख़त्म करना) कार्यक्रम का समर्थन करते हुए भी देखा गया था। डिसइन्फो लैब के अनुसार, HfHR का गठन वर्ष 2019 में इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (IAMC) और ऑर्गनाइजेशन फॉर माइनॉरिटीज ऑफ इंडिया (OFMI) नामक दो इस्लामवादी वकालत समूहों द्वारा किया गया था। दिलचस्प बात यह है कि तीनों संगठनों ने अलायंस फॉर जस्टिस एंड अकाउंटेबिलिटी (AJA) नामक एक और संगठन बनाया था।

एक रिपोर्ट के अनुसार, एलायंस फॉर जस्टिस एंड अकाउंटेबिलिटी (AJA) 22 सितंबर, 2019 को पीएम मोदी की ह्यूस्टन यात्रा के खिलाफ प्रदर्शनों का नेतृत्व करने में सबसे आगे था। डिसइन्फो लैब के मुताबिक, हिंदूज फॉर ह्यूमन राइट्स (HfHR) की सह-संस्थापक सुनीता विश्वनाथ 'वीमेन फॉर अफगान वुमेन' नाम से एक संगठन भी चलाती हैं, जिसे (जॉर्ज) सोरोस ओपन सोसाइटी फाउंडेशन द्वारा वित्त पोषित किया जाता है। बता दें कि, अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस पर मीडिया और 'सिविल सोसाइटी' के माध्यम से एक खतरनाक भारत विरोधी साजिश को गढ़ने के गंभीर आरोप हैं। 

सितंबर 2023 में राहुल गांधी को भारत विरोधी इतालवी वामपंथी राजनेता फैबियो मासिमो कास्टाल्डो के साथ देखा गया था। फैबियो मास्सिमो कास्टाल्डो कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक एक्स हैंडल द्वारा एक्स पोस्ट की दूसरी तस्वीर में सबसे दाईं ओर लाल टाई पहने हुए व्यक्ति नज़र आए थे। फैबियो मास्सिमो कास्टाल्डो का यूरोप में पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी ISI की संपत्ति - परवेज़ इकबाल लोसर के साथ संबंध - राहुल गांधी के यूरोपीय संसद का दौरा करने के इरादे को संदेह के घेरे में लाता है। इसलिए, फैबियो मास्सिमो कास्टाल्डो और उसके कथित ISI मित्र परवेज़ इकबाल लोसर के बारे में अधिक जानना आवश्यक है।

बता दें कि, फैबियो मास्सिमो कास्टाल्डो यूरोपीय संसद के पूर्व सदस्य हैं। इतालवी वामपंथी राजनेता परवेज़ इक़बाल लॉसर के मित्र हैं, जो पाकिस्तानी जासूसी एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) की यूरोप संपत्ति हैं। लॉसर कश्मीर मुद्दे पर भारत विरोधी प्रचार करने और यूरोप में भारत के हितों के खिलाफ पैरवी करने का काम कर रहा है। फैबियो मास्सिमो कास्टाल्डो की पुरानी एक्स पोस्टों में से एक इसका सबूत मौजूद है। राहुल गांधी ने अपनी सितंबर यात्रा के दौरान एमईपी पियरे लारौटुरो से भी मुलाकात की थी। 

मणिपुर मुद्दे पर जुलाई में यूरोपीय संघ की संसद में पारित भारत विरोधी प्रस्ताव के पीछे एमईपी पियरे लारौटुरोउ प्रमुख शख्सियतों में से एक थे। एक लंबे सोशल मीडिया शेखी बघारते हुए, पियरे लारौटुरो ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि यूरोपीय संघ का प्रस्ताव विशेष रूप से पीएम मोदी की फ्रांस यात्रा को लक्षित करने के लिए था। यूरोपीय संसद में समाजवादियों और डेमोक्रेट्स के प्रगतिशील गठबंधन का प्रतिनिधित्व करने वाले पियरे लारौटुरो ने 'भारत, मणिपुर में स्थिति' शीर्षक वाले प्रस्ताव को पेश करने का नेतृत्व किया था।

वहीं, अलविना अलमेत्सा, जिनसे राहुल गांधी ने ब्रुसेल्स में मुलाकात की थी, वह भी उन एमईपी में से एक थीं जो इस प्रस्ताव के पीछे थे। अलमेत्सा यूरोप में मुखर भारत विरोधी प्रचारक रहे हैं। इस साल जनवरी में, उन्होंने ISI से जुड़े संगठन 'द लंदन स्टोरी' द्वारा आयोजित प्रशांत भूषण और शाहरुख आलम के साथ एक चर्चा में भाग लिया था। जुलाई 2023 में, यूरोपीय संघ के पूर्ण सत्र में बोलते हुए, अलमेत्सा ने कहा कि स्थिति की 'निगरानी' करने और शांतिपूर्ण समाधान लाने के लिए बाहरी पर्यवेक्षकों को मणिपुर में अनुमति दी जानी चाहिए। उन्होंने दावा किया कि भारत में मानवाधिकारों और प्रेस की स्वतंत्रता की स्थिति खराब हो रही है और उन्होंने भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का आह्वान किया।

अलविना अलमेत्सा भारत के खिलाफ अपने अभियान, कॉलम लिखने, पैरवी करने और यूरोपीय संघ में भारतीय हितों के खिलाफ अभियान चलाने में लगातार लगी हुई हैं। जनवरी 2021 में, उन्होंने ईयू ऑब्जर्वर में एक लेख लिखकर भारत में 'मानवाधिकार' की स्थिति में हस्तक्षेप के लिए ईयू के समर्थन का आह्वान किया। अपनी भारत-केंद्रित बातचीत और कथा में, अलमेत्सा तीस्ता सीतलवाड से लेकर संजीव भट्ट और स्टेन स्वामी तक सभी भारत विरोधी आवाज़ों को बढ़ावा देने या समर्थन करने के लिए प्लेटफार्मों का उपयोग कर रही है।

विदेशों से भारत में हस्तक्षेप करने का आह्वान करते हैं राहुल गांधी:-

भारत में अपने सियासी लाभ के लिए राहुल गांधी द्वारा 'विदेशी मदद' मांगने के कई उदाहरण हैं। एक के बाद एक चुनाव हारने के बाद, लोकतांत्रिक तरीके से भारतीय जनता का विश्वास जीतने में नाकाम रहने के बाद, उन्होंने वैश्विक वामपंथियों के सामने यह घोषणा करना शुरू कर दिया है कि भारत अराजकता में डूबा हुआ देश है, जहां लोकतंत्र का पतन हो रहा है और केवल वह (राहुल) ही इसे बहाल कर सकते हैं। अप्रैल 2021 में, हार्वर्ड केनेडी स्कूल के इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स में बोलते हुए, राहुल गांधी ने जोर देकर कहा कि अमेरिकी सरकारी प्रतिष्ठान को 'भारत में क्या हो रहा है' के बारे में 'और अधिक कहना' चाहिए।

 

2022 में यूनाइटेड किंगडम में 'आइडियाज फॉर इंडिया' सम्मेलन में राहुल गांधी ने फिर से विदेशी हस्तक्षेप की मांग की थी। अपने विवादास्पद भाषण के दौरान, राहुल गांधी ने दो बार विदेशी हस्तक्षेप की अपनी इच्छा का संकेत दिया। पहला रूस-यूक्रेन मुद्दे के उल्लेख के दौरान है, और दूसरा तब है जब उन्होंने यूरोपीय लोगों से आदेश लेने में अनिच्छुक होने के लिए भारतीय राजनयिकों की आलोचना की थी। राहुल ने कहा था कि, भारत में लोकतंत्र ख़त्म हो रहा है और ब्रिटेन-अमेरिका जैसे देश बैठकर देख रहे हैं। इसी सम्मेलन में उन्होंने लद्दाख की तुलना यूक्रेन से करते हुए यह भी कहा था कि इसमें अमेरिकी हस्तक्षेप की जरूरत है। गांधीजी ने कैंब्रिज विश्वविद्यालय में भी भाषण दिया है। हंगेरियन-अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस की ओपन सोसाइटी फ़ाउंडेशन (OSF) 2013 से कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के गिल्ड ऑफ़ बेनिफैक्टर्स का सदस्य है।

उन्हीं जॉर्ज सोरोस ने भारत में सत्ता परिवर्तन के लिए 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर देने का वादा किया। उनका फाउंडेशन "ऐसे कार्यक्रमों में स्नातकोत्तर छात्रवृत्ति प्रदान करता है, जो सेवारत देशों में चल रहे सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तनों के लिए दीर्घकालिक प्रतिक्रिया का प्रतिनिधित्व करते हैं।" सोरोस ने हाल ही में पीएम नरेंद्र मोदी और अडानी ग्रुप पर खुलकर निशाना साधा है। कांग्रेस अडानी विवाद और उनके नेताओं को भी उछाल रही है, जिससे लोगों को आश्चर्य हो रहा है कि क्या कांग्रेस सत्ता परिवर्तन में रुचि रखने वाले विदेशियों के साथ मिलकर काम कर रही है, जबकि 2024 के आम चुनाव नजदीक हैं।

लोकसभा को देनी होती है निजी दौरों की जानकारी:-

बता दें कि, लोकसभा सचिवालय ने 2022 में अपने एक बुलेटिन में फिर से स्पष्ट किया था कि संसद सदस्यों को गैर सरकारी यात्रा पर विदेश जाने से पहले विदेश मंत्रालय से राजनीतिक स्वीकृति एवं गृह मंत्रालय से FCRA अनुमति प्राप्त करने के बाद लोकसभा स्पीकर को यात्रा के उद्देश्य की जानकारी देनी चाहिए। लोकसभा सचिवालय की कांफ्रेंस शाखा द्वारा जारी किए गए ‘संसद सदस्यों द्वारा विदेशों के गैर अधिकारिक दौरे’ शीर्षक वाले 20 जुलाई के बुलेटिन में यह बात दोहरायी गई थी। इसमें कहा गया कि सांसदों के 'गैर सरकारी विदेश यात्रा' के दौरान किसी भी कार्यकलाप से ऐसा प्रतीत नहीं होना चाहिए कि वे आधिकारिक यात्रा पर हैं। हालाँकि, राहुल गांधी ने उज्बेकिस्तान जाने के लिए कोई अनुमति ली थी या नहीं, इसकी स्पष्ट जानकारी सामने नहीं आई है। क्योंकि, उनके जाने का किसी कोई पता नहीं चला, वे उज्बेकिस्तान गए थे, इसका पता तब चला जब वे वहां से दिल्ली एयरपोर्ट पर लौटे। अब भी ये बातें अज्ञात ही हैं कि, राहुल वहां क्यों गए थे, वहां उन्होंने किससे मुलाकात की, किस मुद्दे पर बात की ? हालाँकि, ये उनका निजी दौरा था, लेकिन देश के भावी पीएम उम्मीदवार से जनता थोड़ी पारदर्शिता की उम्मीद तो रख ही सकती है। 

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