देश में चुनाव का मौसम पास आते ही हर कहीं राम-राम की गूंज सुनाई देने लगी है। अयोध्या में राममंदिर निर्माण को लेकर इस समय राजनेता से लेकर साधु—संत तक राजनीति करने में लगे हुए हैं। शनिवार को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में राम मंदिर निर्माण को लेकर साधु-संत जुटे। इन साधु संतों ने एक स्वर में कहा कि राममंदिर से कम उन्हें बर्दाश्त नहीं है और अब अयोध्या में राम मंदिर बनकर रहेगा। अयोध्या में अगर राम मंदिर का निर्माण हो जाता है, तो यह अच्छी बात है। लेकिन यहां सोचने वाली बात है कि राम की बात करने वाले अपनी राजनीति के चक्कर में राम को ही भूल गए हैं। भगवान राम के उसूलों को यह लोग भूल चुके हैं। राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। मर्यादा पुरुषोंत्तम यानी मर्यादा में रहने वाला, लेकिन इस समय जो राम नाम की राजनीति कर रहे हैं, वह अमर्यादित हो रहे हैं। राम के नाम पर वोट मांगने वालों की भाषा इतनी अमर्यादित हो गई है कि उसे सुनना भी बर्दाश्त नहीं होता। राम मंदिर निर्माण को लेकर राजनीति करने वाले एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने के लिए जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, उसे देखकर तो यही लगता है कि केवल इनकी जवान पर राम हैं, आचरण में इन्होंने उन्हें नहीं उतारा है। हाल ही में आरएसएस ने सरकार को राम मंदिर निर्माण का अल्टीमेटम दे दिया। संघ ने कहा कि मंदिर निर्माण के लिए 1992 जैसा आंदोलन फिर हो सकता है। 1992 में जो आंदोलन हुआ था, उसमें सैकड़ों बेकसूरों की जानें गई थीं। न जाने कितनी मांग सूनी हो गईं और कितने घरों का चिराग बुझ गया। दरअसल, यह राजनेता भूल जाते हैं कि उनके बयानों का आम जनता पर कितना असर पड़ता है। आम जनता इनको असलियत मान लेती है और उनके कहे वाक्यांशों पर सही—गलत का निर्णय कर लेती है। लेकिन इससे इन नेताओं को क्या? इन्हें तो केवल अपनी राजनीति चमकाने से मतलब है फिर चाहे उनके बयानों से आम जनता को कितना भी नुकसान उठाना पड़े, इन्हें फर्क नहीं पड़ता। तीखे बोल: राहुल गांधी की बातों को गंभीरता से न ले, इसका सिर्फ आनंद उठाइये : पीएम मोदी राजनीति का संतकरण