हज़ारों वर्षों पूर्व आज हुआ था श्री राम का जन्म, कामेष्टि यज्ञ से पूरी हुई थी राजा दशरथ की कामना

चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम के प्रकटोत्सव के रूप में रामनवमी का पर्व मनाया जाता है।  हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन मर्यादा-पुरूषोत्तम भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था। हिन्दु धर्म ग्रंथों के मुताबिक, त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों से जनता को मुक्त करने तथा धर्म की पुन: स्थापना के लिये भगवान विष्णु ने मृत्यु लोक में श्री राम के रूप में अवतार लिया था। श्रीराम चन्द्र जी का जन्म माता कौशल्या की कोख से, चैत्र शुक्ल की नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न मेंहुआ था।

रामनवमी के पर्व का महत्व हिंदु धर्म सभ्यता में महत्वपूर्ण रहा है। इस त्यौहार के साथ ही माँ दुर्गा के नवरात्रों का समापन भी होता है। हिन्दू धर्म में रामनवमी के दिन भगवान राम की पूजा अर्चना की जाती है। रामनवमी की पूजा में पहले देवताओं पर जल, रोली और लेपन चढ़ाया जाता है, इसके बाद प्रतिमाओं पर मुट्ठी भरके चावल चढ़ाये जाते हैं। पूजा के बाद आ‍रती की जाती है। कुछ लोग इस दिन व्रत भी रखते है। हिंदु धर्म शास्त्रों के मुताबिक, इस दिन भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था अत: इस शुभ तिथि को श्रद्धालु लोग रामनवमी के रूप में मनाते हैं एवं पवित्र नदियों में स्नान करके पुण्य के भागीदार होते है। 

महाकाव्य रामायण के मुताबिक, अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियाँ थीं, किन्तु काफी समय तक कोई भी राजा दशरथ को संतान का सुख नहीं दे सकी थी। जिससे राजा दशरथ बहुत चिंतित रहते थे। पुत्र प्राप्ति के लिए राजा दशरथ को ऋषि वशिष्ठ ने कामेष्टि यज्ञ कराने के लिए कहा। इसके पश्चात् राजा दशरथ ने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ कराया। यज्ञ ख़त्म होने के बाद महर्षि ने दशरथ की तीनों पत्नियों को एक-एक कटोरी खीर खाने के लिए दी। खीर खाने के कुछ माह पश्चात ही तीनों रानियाँ गर्भवती हो गयीं। ठीक 9 महीनों बाद राजा दशरथ की सबसे बड़ी रानी कौशल्या ने राम को जो भगवान विष्णु के सातवें अवतार थे, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने जुड़वा बच्चों लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया।

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