रमज़ान में इन अंगों का भी रहता है रोज़ा

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जैसे आजकल सभी लोग दिन और तारिख ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से देखकर चलते हैं, वैसे ही मुस्लमान हिजरी कैलेंडर के अनुसार चलते हैं. इस कैलेंडर का नौवा महीना रमज़ान होता है, जिसे अरबी भाषा में रमदान कहते हैं. पूरी दुनिया में फैले सभी मुस्लिम भाइयों के लिए रमज़ान का पाक महीना एक बड़ा उत्सव होता है, जिसे बरकती माना जाता है. कहा जाता है कि इस महीने में आसमान से अल्लाह की तरफ से रहमतें और बरकतें आती हैं.

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इसलाम के अनुसार हरेक शख्स को रोज़ा रखना ज़रूरी यानी फ़र्ज़ होता है, जिस तरह 5 वक़्त की नमाज़ ज़रूरी होती है. मात्र भूखे प्यासे रहने को ही रोज़े का नाम नहीं दिया गया है. रोज़ा रखने के दौरान कुछ मानसिक और व्यावहारिक बंधनों को भी ज़रूरी बताया गया है. बताया जाता है कि रोज़ा सिर्फ मुँह से नहीं होता, इंसान के पूरे शरीर का रोज़ा होना चाहिए, तभी उसका रोज़ा खुदा की बारगाह में कबूल होता है.

यानी कि आँखों से कुछ गलत न देखना, कानों से कुछ गलत न सुनना, जुबां से कुछ गलत न बोलना, हाथों से कुछ गलत न करना, पैरों से किसी गलत जगह की तरफ रुख ना करना और पूरी तरह खुदा की इबादत में डूबे रहने को रोज़ा कहा गया है. रमज़ान के दौरान रात में ख़ास नमाज़ पढ़ी जाती है जिसे तरावीह कहा जाता है. इसमें पूरे कुरआन के सिपारों (अध्याय) को एक के बाद एक करके दोहराया जाता है.

इन हालातो में नहीं टूटते रोज़े

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