भगवान राम से पहले 3 बार युद्ध में हार गया था रावण, बच्चों ने बना लिया था बंदी

आप सभी को बता दें कि रावण बहुत ही ज्ञानी और महाप्रतापी था लेकिन उसका घमंड उसके सर्वनाश का कारण बन गया. जी हाँ, कहते हैं रावण केवल श्रीराम के हाथों ही नहीं हारा था बल्कि इससे पहले भी वह 4 बार हार चुका था और उन 4 बार के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं.  आइए जानते हैं.

1. ज्योतिषों के अनुसार रावण ने अपने तप बल से इतनी शक्तियां प्राप्त कर लीं थी कि देवता भी उससे डरते थे और वह अपनी इन्हीं शक्तियों और तप बल पर घमंड के कारण एक बार पाताल लोक पर अधिकार के विचार से वह अकेला राजा बलि से युद्ध करने चला गया. वहीं अपनी शक्तियों के मद में वह यह भूल गया था कि पाताल लोक में किसी अन्य व्यक्ति की मायावी शक्तियां काम नहीं करतीं और जब रावण वहां पहुंचा तो बाहर खेल रहे बच्चे उसे आश्चर्य से देखने लगे, क्योंकि नागलोक का न होने के कारण एक तो वह उन्हें देखने में अजीब लग रहा था, साथ ही वह राजा बलि को युद्ध के लिए ललकार रहा था. वहीं बच्चों ने उसे पकड़कर अस्तबल में बांध दिया और जब उसने अपनी शक्तियों का उपयोग करना चाहा तो खुद को असहाय महसूस किया क्योंकि उसकी कोई शक्ति वहां काम नहीं कर रही थी. वहीं जब राजा बलि को इस घटना का पता चला तब उन्होंने रावण को बच्चों की कैद से मुक्त कराया.

2. कहते हैं किष्किंधा के राजा बाली महाबली था। उसने अधर्म से अपने भाई का राज्य हड़पा और उसकी पत्नी को बंदी बनाकर भाई को राज्य से निकाल दिया. इसी के साथ उन्हें ऐसा वरदान प्राप्त था कि जो भी सामने से आकर इनसे युद्ध करेगा उसकी आधी शक्ति इन्हें मिल जाएगी। बताया गया है कि एक बार जब बाली संध्या पूजन कर रहा था, तब रावण अपने पुष्पक विमान से वहां पहुंचा और पीछे से वार करने के इरादे से आगे बढ़ा, लेकिन बाली ने रावण को देख लिया और उसे अपने एक हाथ में दबाकर 4 समुद्रों की परिक्रमा लगा ली. कहते हैं रावण ने अपने प्राणों की रक्षा के लिए बाली से क्षमा मांगी और उसकी तरफ मित्रता का हाथ बढ़ाया और फिर बाली ने रावण की मित्रता स्वीकार कर ली.

3. आप सभी को बता दें कि रावण भगवान शिव का अनन्य भक्त था, लेकिन जब इंसान का बुरा समय आता है तो सबसे पहले विवेक उसका साथ छोड़ देता है. ज्योतिषों के अनुसार अपनी शक्तियों के घमंड में रावण भगवान शंकर को अपने साथ ले जाने के लिए कैलाश पर्वत पर जा पहुंचा और उसने भगवान शिव को अपने साथ जाने के लिए ललकारा, लेकिन जब शिवशंभू ने उसे कोई उत्तर नहीं दिया और ध्यान मग्न बैठे रहे तो रावण ने उन्हें कैलाश सहित उठाकर फेंकने का मन बनाया और वह पर्वत उखाड़ने लगा. कहते हैं इस पर भगवान शिव ने केवल अपने अंगूठे के बल से कैलाश को स्थिर कर दिया और रावण का हाथ पर्वत के नीचे दब गया और जब बहुत प्रयास के बाद भी रावण अपना हाथ नहीं निकाल पाया तो उसने वहीं खड़े-खड़े भगवान शिव की स्तुति की और शिव तांडव स्त्रोत की रचना कर दी. कहा जाता है इस पर भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसे मुक्त कर दिया और तब रावण ने भगवान शिव को गुरु बनाकर उनकी शरण में आ गया.

4. वहीं अंत में वह राम से हार गया.

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