मुम्बई : बाजार, विशेषज्ञ और ज्यादातर विश्लेषकों की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए आरबीआई ने आम आदमी को किसी भी तरह की राहत न देते हुए रेपो रेट में कोई परिवर्तन नहीं किया है. चालू वित्त वर्ष की छठवीं मौद्रिक समीक्षा बैठक के बाद रिजर्व बैंक ने कहा कि देश के सामने कई चुनौतियां मौजूद हैं. उल्लेखनीय है कि बाजार , विशेषज्ञ और ज्यादातर विश्लेषकों ने उम्मीद जताई थी कि रिजर्व बैंक अपनी छठवीं द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा में रेपो रेट में 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती कर देश में ब्याज दरों को कम करने का रास्ता साफ करेगा .रेपो रेट में कटौती की उम्मीद का सबसे अहम आधार दिसंबर में पिछली मौद्रिक नीति के बाद से देश की रीटेल महंगाई का कम होना था. रिजर्व बैंक ने जनवरी 2015 के बाद से रेपो रेट में 175 बेसिस प्वाइंट की कटौती की है.लेकिन इसके बावजूद बैंकों ने अपने ब्याज दरों को कम करने का फैसला नहीं लिया है. लिहाजा, रेपो रेट में एक और कटौती से पहले भी बैंकों के पास अपने ब्याज दरों में कटौती करने की पूरी संभावना है. बता दें कि रिजर्व बैंक ने माना कि देश की आर्थिक स्थिति के सामने वैश्विक चुनौतियां मौजूद हैं.इसलिए रिजर्व बैंक ने नोटबंदी से खपत पर लगी चोट के बावजूद ब्याज दरों में अधिक कटौती के कयासों को सिरे से नकार दिया. जिन कारणों से रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में कटौती का फैसला टाला उनमें अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की मजबूत होती कीमत,अमेरिका की मौद्रिक नीति का 9 साल के बाद सामान्य होना. क्रूड ऑयल की कीमतों में इजाफे के साथ ही वैश्विक स्तर पर मेटल और मिनरल की कीमतों में इजाफा होने की संभावना से महंगाई बढ़ने का खतरा, नोटबंदी लागू होने के बाद रीटेल महंगाई नवंबर में 2.59 फीसदी के स्तर से गिरकर 2.23 फीसदी पर पहुँचने के बावजूद नई करेंसीके आने से एक बार फिर महंगाई के दस्तक देने के संकेत शामिल है. यह भी पढ़ें फरवरी में शुरू हुई नोटबन्दी की चर्चा, केंद्र के प्रस्ताव पर RBI की मंजूरी बचत खाते से हटेगी नकद निकासी की सीमा