बैंगलूर: गुरुवार को सतीश धवन स्पेस सेंटर से भारत के आठवें रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट IRNSS-1H को लांच किया गया लेकिन ये बेहद दुःख की बात रही की भारत को इस मिशन में सफलता हाथ नहीं लग सकी और ISRO (इंडियनस्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन) को एक बहुत बड़ा झटका लगा। पहली बार इसरो ने किसी निजी कम्पनी को इस सैटेलाइट के निर्माण से लेकर टेस्टिंग तक का कार्यभार सौपा था। अगर यह प्रक्षेपण सफल रहता तो भारत के लिए यह एक नए युग की शुरुआत होती। यह आठवां नेविगेशन सिस्टम देश की रक्षा प्रणाली में अहम् योगदान देता जिससे देश की सुरक्षा और सेना की तमाम देशो पर पैनी नज़र हो जाती। GPS (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) में इस सेटेलाइट का महत्त्वपूर्ण योगदान होता। इससे पहले 7 नेविगेशन सैटेलाइट सफलता पूर्वक लांच किया जा चुके हैं लेकिन उनमे से तीन की एटॉमिक क्लॉक ने काम करना बंद कर दिया है और ये आठवां सैटेलाइट IRNSS-1A की जगह लेता। एटॉमिक क्लॉक ही नेविगेशन डाटा को उपलब्ध कराती हैं। दुनिया में सिर्फ़ 5 देशों के पास ही अपना GPS सिस्टम है। हलाकि अभी तक इस मिशन के फ़ैल होने का कारन 1 टन अतिरिक्त भार को रॉकेट दवारा ले जाना बताया जा रहा था लेकिन इसरो के चैयरमेन एएस किरण कुमार ने मीडिया से मुखातिब होकर इस बात का खंडन किया। उन्होंने बताया कि PSLV पर कोई अतिरिक्त भार नहीं था लेकिन अपने चौथे चरण में सैटेलाइट हीट शील्ड से अलग नहीं हो सका और मिशन फ़ैल हो गया। हीट शील्ड का अलग ना हो पाने का कारण अभी सामने नहीं आया है लेकिन इसकी विस्तृत जांच की जायेगी। ये PSLV-C39 की 41वी उड़ान थी। इससे पहले अपनी 40 उड़ानों में से इस लांचिंग व्हीकल ने 38 सफल लांचिंग की है। लगभग 7 साल बाद इसरो का कोई मिशन फ़ैल हुआ है। इससे इसरो को काफी आघात पंहुचा है। मिशन के फ़ैल होने की पूरी जांच की जा रही हैं। इस मिशन को पीएम मोदी ने नाविक नाम दिया है जिसके तहत कुल 9 नैविगेशन सैटेलाइट की लांचिंग की जानी है। इस पूरे प्रोजेक्ट की लागत 1420 करोड़ रूपये है। सीएम रुपाणी ने राम के तीर के तुलना इसरो की मिसाइल से की एक बार फिर ISRO ने निकाली भर्ती ISRO ने 10वी पास वालो के लिए निकाली भर्ती