नई दिल्ली। चुनाव में मुकाबला करने वाले प्रत्याशी और उनके समर्थकों को धर्म, जाति, समुदाय या फिर भाष के आधार पर वोट मांगना गैरकानूनी है। इतना ही नहीं सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि चुनाव एक धर्मनिरपेक्ष पद्धति है। जिसके कारण धार्मिक आधार पर मत की मांग करना संविधान का उल्लंघन है। दरअसल जनप्रतिनिधियों को अपने काम और धर्मनिरपेक्ष आधार पर करने चाहिए। मिली जानकारी के अनुसार आने वाले पांच राज्यों में इसका अच्छा असर होने की पूरी संभावना बताई जा रही है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा याचिका दायर की गई थी इस मामले में सवाल किया गया कि धर्म व जाति के आधार पर मत मांगना जन प्रतिनिधित्व कानून के अंतर्गत एक तरह का असंगत तरीहका है या फिर ऐसा करना ठीक है। ऐसे में इस मामले में धारा 123 - 3 के अंतर्गत इसे धर्म की बात कहा गया है। मिली जानकारी के अनुसार इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय को व्याख्या करने के लिए कहा गया था। जब इस प्रकरण पर न्यायालय ने अपनी कार्रवाई की और सुनवाई हुई तो यह बात सामने आई कि आखिर जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 - 3 के अंतर्गत उसकी व्याख्या क्या होगी। इस दौरान कहा गया कि कि जब धर्म के नाम पर वोट मांगने की बात आएगी तो व्यक्ति के धर्म के अर्थ को किस तरह से देखा जाएगा। गौरतलब है कि इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने भी जनप्रतिनिधित्व कानून को लेकर कहा था कि हम यह जानना चाहते हैं कि धर्म के नाम पर वोट मांगने की बात आखिर किस व्यक्ति के धर्म की बात की जाती है। आखिर यह एजेंट के धर्म को लेकर चर्चित किया जा रहा है या फिर कैंडिडेट के धर्म की बात की जाना है। आखिर यह सवाल है कि वोट मांगने वाला अपने धर्म की बात कर रहा है या फिर जो वोट देने वाला मतदाता है उसके धर्मग् की बात की जाएग। ऐसे में इसे जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 के तहत व्याख्या के लिए रखा गया। गौरतलब है कि इस मामले में वरिष्ठ वकील श्याम दीवान, अरविंद दत्तार, कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद व इंदिरा जय सिंह आदि ने दलीलें प्रस्तुत कीं। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कह दिया गया है कि वजह हिंदुत्व को लेकर वर्ष 1995 में दिए जाने वाले निर्णय की समीक्षा नहीं कर रहा हैं दरअसल इस दौरान सर्वोग्च्च न्यायालय ने कहा था कि हिंदुत्व शब्द भारतीय लोगों की जीवन शैली की ओर इशारा करता है। हिंदुत्व शब्द को केवल एक धर्म तक सीमित नहीं रखा जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय में दायर हुई मथुरा हिंसा को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय है अंतरिम निर्णय