नई दिल्ली: 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद ट्रेनों को पटरी से उतारने की कोशिशों के बढ़ते मामलों के बीच, एक इस्लामिक विद्वान अब ऐसी वारदातों में शामिल उपद्रवियों का बचाव करने के लिए सामने आया है, जिसमे बेकसूर लोगों की जान जाती है, साथ ही सरकारी और सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान होता है। उल्लेखनीय है कि सोमवार (9 सितंबर) को एक टीवी डिबेट में इस्लामिक विद्वान कामरान मलिक ने कहा कि ट्रेनों को पटरी से उतारने की तोड़फोड़ की कोशिशें योगी आदित्यनाथ और मोदी सरकार की कानून व्यवस्था के खिलाफ “बदला लेने वाली” हरकतें हो सकती हैं। यह घटना सोमवार को उस वक़्त हुई, जब मीडिया पर इस बात की बहस चल रही थी कि कानपुर में ट्रेन को पटरी से उतारने की साजिश को कैसे टाला गया। रिपोर्ट के अनुसार, लोको पायलट ने इमरजेंसी ब्रेक लगाकर एक बड़ी ट्रेन दुर्घटना को टाल दिया क्योंकि कुछ बदमाशों ने रेलवे ट्रैक पर गैस सिलेंडर रख दिया था, जहां कालिंदी एक्सप्रेस आ रही थी। इसके साथ ही वहां एक झोले में बारूद और बोतलों में पेट्रोल भी रखा था, ताकि हल्की सी चिंगारी होने पर ही आग भड़क सके और ट्रेन उसके आगोश में आ जाए। इस पर बहस के दौरान, जब न्यूज़ एंकर ने पूछा कि क्या ट्रेनों को पटरी से उतारने के लिए कोई बड़ी साजिश रची जा रही है, क्योंकि बदमाशों को पत्थर, गैस सिलेंडर, लकड़ी के लट्ठे आदि रखते हुए पकड़ा गया था। इस पर इस्लामिक 'विद्वान' कामरान मलिक ने जवाब दिया कि यूपी सरकार का, केंद्र सरकार का, इनका जो कानून व्यवस्था को कंट्रोल करने का जो रवैया है, वो ऐसा है कि लोग 'बदला' ले सकते हैं। जब एंकर ने उनके शब्दों पर कड़ी आपत्ति जताई और उनसे अपने शब्द वापस लेने को कहा, तो कामरान मलिक ने बेहद ही बेशर्मी से इसका बचाव करते हुए कहा, “मैं सही बात कह रहा हूं।” कामरान मलिक ने कहा कि सरकार के विध्वंस अभियान (बुलडोज़र) और कथित हिरासत में मौतों के कारण लोग इस तरह से बदला ले सकते हैं। हालाँकि, एंकर ने उपद्रवियों का बचाव करने के लिए इस्लामिक विद्वान की आलोचना की और कहा कि यह दावा करना शर्मनाक है कि अगर बुलडोजर की कार्रवाई की गई तो उपद्रवी ट्रेनें पटरी से उतार देंगे। बता दें कि, एक अन्य मीडिया पैनलिस्ट और इस्लामिक विद्वान गुलाम सरवर ने भी मलिक की टिप्पणी को जायज ठहराने और ऐसे कृत्यों में लिप्त उपद्रवियों का बचाव करने की कोशिश की। हालाँकि, अगर कुछ लोगों को सरकार पर गुस्सा है भी, तो वो निर्दोषों की जान कैसे ले सकते हैं, ये तो स्पष्ट रूप से आतंकी कृत्य है और कामरान मलिक बेशर्मी से इसका बचाव भी कर रहे हैं । बता दें कि कामरान मलिक अक्सर टीवी डिबेट में मीडिया पैनलिस्ट और इस्लामिक 'स्कॉलर' के तौर पर नज़र आते रहे हैं । जामिया मिलिया इस्लामिया के पूर्व छात्र कामरान मलिक सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं, जब वे इस तरह की बात कर रहे हैं, तो आप आम लोगों की मानसिकता का आसानी से अंदाजा लगा सकती है। उनके ट्विटर हैंडल के मुताबिक, वे कांग्रेस समर्थक हैं और लोगों से कांग्रेस को वोट देने की खुली अपील भी कर चुके हैं। हालांकि, यह ट्रेन दुर्घटना करवाने की साजिश वाली पहली घटना नहीं है। पिछले कुछ समय में कई बार ट्रेनों को पटरी से उतारने की कोशिशें की गई हैं। इसी तरह की एक घटना 17 अगस्त 2024 को कानपुर में हुई थी, जिसमें साबरमती एक्सप्रेस के 17 डिब्बे पटरी से उतर गए थे। इसके अलावा, राजस्थान और अलीगढ़ में भी रेलवे ट्रैक पर खतरनाक वस्तुएं रखी गई थीं। अलीगढ़ में भी पटरी पर मोटरसाइकिल के स्क्रेप रखे गए थे, इस मामले में अफ़सान नामक आरोपी गिरफ्तार किया गया था। वहीं, केरल में रेलवे की सिग्नल केबल चुराने में भी मुनव्वर और अब्बास को गिरफ्तार किया गया था, जिससे कई ट्रेनें प्रभावित हुईं थीं। बंगाल में भी किसी ने रेलवे सिग्नल में अख़बार फंसा दिया था। ये सिग्नल बेहद महत्वपूर्ण होते हैं, जिससे लोको पायलट को पता चलता है कि ट्रैक खाली है या नहीं ? वरना ट्रेनों की आमने-सामने की भिड़ंत हो सकती है। इन तमाम घटनाओं का संबंध कहीं न कहीं पाकिस्तान स्थित आतंकी फरहतुल्लाह गोरी से भी जुड़ रहा है, जो भारत में स्लीपर सेल्स के जरिए इंफ्रास्ट्रक्चर पर हमले की साजिश रच रहा है। गोरी ने भारतीय एजेंसियों को चकमा देकर अपने गुर्गों यानी कट्टरपंथियों से प्रेशर कुकर बम जैसी चीजों से धमाके करने और ट्रेन पलटाने के लिए कहा है, ताकि सरकार को उखाड़ा जा सके। इसके पीछे का मकसद देश में अव्यवस्था फैलाकर जनता को भड़काना है। यहां बड़ा सवाल उठता है कि क्या ये साजिशें किसी बड़े सरकार विरोधी अभियान का हिस्सा हैं, ताकि किसी भी तरह देश की स्थिति को अस्थिर किया जा सके? कई विपक्षी नेता भी पहले से देश में बांग्लादेश जैसी स्थिति बनने की धमकी दे रहे हैं, लेकिन इन साजिशों पर उनकी चुप्पी गंभीर सवाल खड़े करती है। ट्रेन बेपटरी होने पर राजनीति गरम हो जाती है, लेकिन जांच की मांग के बजाय, कुछ नेता इसे अपने सियासी एजेंडे का हिस्सा बना लेते हैं। यह समय राजनीति से ऊपर उठकर देखने का है। यह खतरा सिर्फ सरकार या सत्ता के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए है, और इसमें विपक्ष के नेता भी इस साजिश के शिकार हो सकते हैं। कट्टरपंथियों और देश विरोधी तत्वों द्वारा रची जा रही इन साजिशों के खिलाफ सभी राजनीतिक दलों को एकजुट होना चाहिए, ताकि इस खतरे का सामना पूरी दृढ़ता से किया जा सके। सेना को और मजबूत करने की तैयारी, HAL को दिया 26 हज़ार करोड़ का टेंडर केरल के इस शहर में पानी की भीषण किल्ल्त, बंद करने पड़े स्कूल-कॉलेज 'तो क्या रूस से तेल ना खरीदें..', प्रशांत भूषण को सुप्रीम कोर्ट की तीखी नसीहत