रिंकू शर्मा और तबरेज़ अलग क्यों ? देखिए इन 10 नृशंस हत्याओं पर मीडिया का दोगलापन

नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी के मंगोलपुरी में बीते दिनों हुई रिंकू शर्मा की निर्मम हत्या ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। हर किसी के मन में रह-रहकर ये सवाल उठ रहा है कि आखिर रिंकू शर्मा का कसूर क्या था ? क्या वह देश में तेजी से पनप रही हिन्दू-मुस्लिम घृणा की बलि चढ़ गया।  लेकिन एक बात तो जाहिर है कि रिंकू केवल उस सूची एक नया नाम है, जिसकी मौत पर न राजनितिक दिग्गजों ने आंसू बहाए और न ही देश के तथाकथित 'सेक्युलर' एवं 'निष्पक्ष' मीडिया ने ही कोई बवाल मचाया, जैसा कि उन्होंने तबरेज़, पहलु और अखलाख के समय पर किया था।

तबरेज़ हो, त्रिलोचन हो या थॉमस, जान सबकी एक बराबर ही होती है, क्योंकि संसार की रचना करने वाले परमपिता ने सभी को एक समान ही बनाया है, फिर क्यों हमारा मीडिया और सियासी हस्तियां एक मौत पर तो आसमान सिर पर उठा लेते हैं, मुद्दा संयुक्त राष्ट्र तक पहुंच जाता है, जबकि दूसरी पर धृतराष्ट्र बन जाते हैं या फिर एक झूठा नैरेटिव गढ़ने की कोशिश करने लग जाते हैं। शायद इसके पीछे वोट बैंक और तुष्टिकरण की राजनीति जिम्मेदार है, वरना जो दिल्ली सीएम केजरीवाल अखलाख के परिवार वालों से मिलने नोएडा के दादरी पहुंच गए थे, रिंकू की निर्मम हत्या पर उनके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला। आज हम आपको ऐसी ही 10 निर्मम हत्याओं के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनपर सत्ता के चाहने वालों ने भी आँखें मूँद ली और न ही मीडिया ने इसे तूल देना उचित समझा, क्योंकि न सियासतदानों को इसमें मसाला नज़र आया और न ही मीडिया को मसाला।

1 - ध्रुव त्यागी :-  11 मई 2019 देर रात क़रीब 1 बजे बिजनेसमैन ध्रुव त्यागी की 26 साल की बेटी को माइग्रेन का दर्द हो गया था। वह बेटी को दिखाने दिल्ली के आचार्य भिक्षु हॉस्पिटल गए थे। वहीं से लौटने के दौरान मोहम्मद इस्लाम नामक एक आरोपी ध्रुव की बेटी को छेड़ने लगा, जिसका विरोध करने पर 5 से 6 लोग ध्रुव त्यागी को घेर लेते हैं और चाक़ू से ताबड़तोड़ वार करने लगते हैं।  जब ध्रुव के बेटा अनमोल यह देखता है कि उसके पिता पर हमला हो रहा है, तो वह अपने पिता पर लेट जाता है,  लेकिन आरोपी चाकू से लगातार वार करते रहे। दरिंदगी का आलम यह रहा कि त्यागी के हाथ-पैर को पत्थरों से कूचा गया, उनका चेहरा कुचल दिया गया, उनके दाँत तोड़ दिए गए। उनके नाखून तक उखड़ गए थे।

2 - पालघर मॉब लिंचिंग :- महाराष्ट्र के पालघर में हुए इस जघन्य हत्याकांड ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। 2-4 दिनों तक सोशल मीडिया पर जमकर आक्रोश देखा गया, लेकिन हमेशा की तरह वह भी जल्द ही ठंडा पड़ गया। घटना के अनुसार, महाराष्ट्र के पालघर के गड़चिनचले गांव में दो साधुओं को बेरहमी से पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया गया था। यह पूरी वारदात वहां मौजूद कुछ पुलिसकर्मियों के सामने हुई। पुलिसकर्मी खुद घायल साधू को बदहवास हमलावरों की भीड़ में अकेला छोड़ते नज़र आए थे। हमले के बाद साधुओं को अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था।

3 - अंकित शर्मा :- उत्तर-पूर्वी दिल्ली के नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (NRC) को लेकर भड़के दंगों के दौरान इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) अफसर अंकित शर्मा की निर्मम तरीके से हत्या हुई थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि उनके शरीर पर 400 बार चाकुओं से हमला हुआ था। करीब 6 लोगों ने 2 से 4 घंटे तक उन्हें गोदा था। यह नृशंसता का सबसे वीभत्स चेहरा था, ये उसी तरह था, जैसे कि पाकिस्तानी सेना हमारे जवानों के शहीद होने के बाद उनके सिर काटकर ले जाती थी, इस हमले में भी वही घृणा और पाशविकता नज़र आई थी। हालांकि, मीडिया-पुलिस इसे da

4 - बन्धु प्रकाश :- बंगाल के मुर्शिदाबाद इलाके में RSS वर्कर बंधु प्रकाश पाल, उनकी सात महीने की गर्भवती पत्नी, तथा आठ वर्षीय मासूम बेटे को 8 अक्टूबर 2019 को धारदार हथियार से गला काटकर मौत के घाट उतार दिया गया था। जिसने सबको हिलाकर रख दिया था। पहले पुलिस ने इसे निजी रंजिश के कारण हुई हत्या बताया था। बाद में इसके पीछे 24000 रुपए का एंगल जोड़ दिया गया। लेकिन सवाल यह है कि दुश्मनी किससे थी बंधू प्रकाश से, उसके मासूम बेटे से, उसके अजन्मे बच्चे से या पत्नी से, जो सभी की निर्मम हत्या कर दी गई। 

5 - प्रीति माथुर :-  26 जुलाई 2019 को प्रीति माथुर को एक सिरफिरे आशिक मोहम्मद मुनासिर ने निजामुद्दीन इलाके में सरेआम चाकूओं से घोंपकर मार डाला। प्रीती का गुनाह केवल यह था कि वह मुनासिर से प्यार नहीं करती थी। 

6- कमलेश तिवारी:- हिंदुत्व के लिए आवाज़ उठाकर कट्टरपंथियो के ख़िलाफ मुखर होकर बोलने वाले हिंदू नेता कमलेश तिवारी की मौत ने साल 2019 में देश में एक दहशत पैदा कर दी थी। हिन्दुओं में यह खौफ घर करने लगा था कि अगर उन्होंने भी आवाज़ उठाने की हिम्मत की, तो उनका हश्र भी यही होगा। उनके घर में घुसकर उन्हे 15 बार चाक़ू मारे गए और चेहरे पर गोली। इस हत्याकांड के बाद मीडिया कमलेश को पैगम्बर मोहम्मद के अपमान करने का दोषी दिखाकर, इस वारदात को जायज़ ठहरने में जुट गया था, जैसे कि देश के ही कुछ लोगों ने फ्रांस में सैम्युल पैटी की गर्दन कलम करने को जायज़ ठहराया था। 

7- ट्विंकल शर्मा:- यूपी के अलीगढ़ में हुआ ये हत्याकांड वो वीभत्स घटना है, जिसने सबको सोचने पर विवश कर दिया कि समाज इंसानों के लिए रहने लायक बचा भी है या नहीं। इस घटना के आरोपितों का नाम मोहम्मद जाहिद और मोहम्मद असलम था। जिन्होंने महज 10 हजार  रुपए के लिए ढाई साल की बच्ची के साथ नृशंसता की हर हद पार की। आरोपियों ने बच्ची को मारने से पहले 8 घंटे उसे इतना मारा था, इसी पिटाई में उसका पैर, पसलियां, हाथ टूट गए थे. उसकी आंखों के टिशू तक डैमेज हो गए थे। बाद में उसकी लाश भी ऐसी जगह फेंकी, जहाँ उसे कुत्तों ने बुरी तरह नोचा था। लेकिन कठुआ की 'आसिफा' के लिए न्याय की तख्ती उठाने वाले फ़िल्मी सितारों ने भी इस मुद्दे पर मौन धारण कर लिया। 

8- अंकित सक्सेना :- मुस्लिम प्रेमिका के परिवार वालों ने जिसे दिल्ली के टैगोर गार्डन की एक गली में सरे आम मौत के घाट उतारा, उस युवक का नाम अंकित सक्सेना था। यह घटना साल 2018 की 1 फरवरी की थी। इस हत्या के बाद मुस्लिम लड़की ने खुद बताया था कि उसके परिवारवालों ने उसके प्रेमी अंकित को मारा है। किन्तु, ''प्रेम सबसे बड़ा है, इसके सामने धर्म-मजहब कुछ नहीं'' जैसी बातें करने वाले बुद्धिजियों के मुँह इस मामले पर सिल गए थे। 

9- हीना तलरेजा:- साल 2017 में 5 जुलाई को हिना तलरेजा का शव पुलिस को मिला था। जिसके बाद उनके क़त्ल को मीडिया में जगह मिली। जांच के बाद पता चला कि हिना के पति अदनान ने पहले अपनी आँखों के सामने अपने दोस्तों से उसका सामूहिक दुष्कर्म करवाया और फिर उसे गोली मारकर हत्या कर दी। बाद में शव को कौशांबी जिले के एक हाइवे पर फेंककर भाग निकला। यहां भी तथाकथित बुद्धिजीवी तबका मौन रहा। 

10- वी.रामलिंगम:- तमिलनाडु में दलितों के इलाके में धर्म परिवर्तन होता देखकर वी राम लिंगम ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (PFI) के कुछ लोगों का विरोध किया था। जिसके बाद 7 फरवरी को पट्टाली मक्कल काची के नेता की घर से बाहर निकालकर क़त्ल कर दिया गया। इस मामले में पुलिस ने निजाम अली, सरबुद्दीन, रिज़वान, मोहम्मद अज़रुद्दीन और मोहम्मद रैयाज़ को हिरासत में लिया था। 

मामले इसके अलावा और भी हैं, कई तो ऐसे हैं जो मीडिया में आए तक नहीं, क्योंकि या तो उनकी खबर वहां तक नहीं पहुंची या फिर उसे महत्व देना उचित नहीं समझा गया। लेकिन इन सबके बीच एक सवाल जरूर उठता है कि भारत जैसे राम-रहीम, साईं-कबीर को सामान रूप से मानने वाले देश में मनुष्यों की जान को क्यों बराबर नहीं माना जाता ? क्यों एक हत्या पर आक्रोश उमड़ता है और दूसरी पर मौन ?

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