आप सभी जानते ही होंगे पौराणिक काल में कई महान ऋषि हुए। जी हाँ और इन्ही में से एक थे ऋषि दुर्वासा, जिन्हें अपने क्रोध के लिए जाना जाता था। कहा जाता है इनके क्रोध से धरती से लेकर देवलोक तक सभी भयभीत थे। जी हाँ और तो और स्वर्ग की हर अप्सरा भी इनका तप भंग करने से खौफ खाती थीं। कहा जाता है ऋषि दुर्वासा को जब क्रोध आता था, तब वे किसी को भी भयंकर श्राप दे देते थे। केवल यही नहीं बल्कि उनके क्रोध से इंद्रदेव भी नहीं बच पाए थे। अब आज हम आपको उस रोचक कथा के बारे में बताने जा रहे हैं जब ऋषि दुर्वासा ने देवताओं को भयंकर श्राप दे दिया था उस श्राप के लाभ से आसुरी शक्तियों ने श्री को वश में कर लिया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार- एक बार इंद्र स्वर्गलोक के भोग-विलास में व्यस्त हो गए। वे अपने कर्तव्यों को भूल चुके थे। पूरा दिन वे अप्सराओं की लीला में व्यस्त रहते थे। महान ऋषियों को ये पता चला तो उन्होंने इंद्र को समझाने का फैसला लिया। सभी महर्षि इंद्रलोक की ओर चल पड़े। ऋषि दुर्वासा भी इंद्रलोक पहुंचे। उन्हें पता था कि इंद्र अपने अभिमान से चूर हैं, लेकिन उनके समझाने पर वे मान जाएंगे उन्हें अपने कर्तव्यों का बोध हो जाएगा। जैसे ही दुर्वासा इंद्रलोक के द्वार पर पहुंचे, तो उनके स्वागत के लिए कोई नहीं आया। ये देखकर ऋषि दुर्वासा को क्रोध आया, मगर वे चुप रहे अंदर सभा में पहुंच गए। ऋषि दुर्वासा को देखकर इंद्र अपने आसन से बैठकर ही सिर्फ नमस्कार किया। इंद्र के नमस्कार में भी अभिमान झलक रहा था। ऋषि दुर्वासा अपने साथ बैजयंती फूलों की माला साथ लाए थे। उन्होंने इंद्र को आशीर्वाद देते हुए हाथ बढ़ाया वह माला इंद्र को भेंट की। इंद्र देव ने ऋषि दुर्वासा से माला ली और कहा कि आप ये सुगंधित माला क्यों लाए हैं। इंद्रलोक में सुगंध की कोई कमी नहीं है। इंद्र देव ने वो माला ऐरावत के गले में डाल दी। ऐरावत ने माला अपने गले से निकालकर पैरों से कुचल दी। ऋषि दुर्वासा ने इसे अपमान समझा उन्हें बहुत क्रोध आया। उन्होंने इंद्र को श्राप दे दिया कि जिस चीज पर उन्हें इतना घमंड है वो ही उनसे छीन जाएगी। इंद्रदेव श्रीहीन यानी लक्ष्मी से दूर हो जाएंगे। उसके बाद इस श्राप का असर हुआ। कुछ समय बाद इंद्र दैत्यों के राजा बलि से युद्ध हार गए। बलि ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। सारी लक्ष्मी लुप्त हो गई। इंद्र पूरी तरह कंगाल हो गए। हालांकि इस श्राप का असर कुछ समय बाद ही पूरी सृष्टि पर भी दिखा था धीरे धीरे समस्त सृष्टि श्री विहीन हो गई थी। उसके बाद माँ लक्ष्मी को पुनः पाने के लिए अमृत मंथन किया गया था जिसके दौरान सागर से माँ दोबारा प्रकट हुई थीं और विष्णु जी के पास पुनः लौट आई थीं। माँ लक्ष्मी के आगमन से ही समस्त सृष्टि में श्री का यानी कि धन दौलत का वास होने लगा था। आखिर क्यों शगुन के लिफाफे में देते हैं 1 रुपए का सिक्का? अक्षय तृतीया पर जरूर पढ़े यह मार्मिक कथा 4 मई को है विनायक चतुर्थी, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि