रिसर्च से हुआ खुलासा, भारतीय नोटों से बिमारियों का खतरा

नई दिल्ली : भारतीय वैज्ञानिकों के एक दल द्वारा किए गए एक विशेष शोध-कार्य में भारत में सामान्य रूप से चल रहे साधारण नोटों के बारे में एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है । उनके शोध में 10, 20 और 100 के नोटों पर खतरनाक बैक्टीरिया और वायरस पाये गए हैं । यहाँ तक कि नोटों पर एंटीबायोटिक प्रतिरोधक जीन भी मिला है ।

वैज्ञानिकों की इस टीम में काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च तथा इंस्टीट्यूट ऑफ जिनोमिक्स और इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के वैज्ञानिक शामिल थे; जिन्होंने मिलकर काम किया । इस रिसर्च-स्टडी की रिपोर्ट के जरिये अलर्ट जारी किया गया है कि करंसी नोट पर मिले फंगस और प्रोटोजोआ से संक्रमण (इन्फेक्शन) हो सकता है ।

उन्नत तकनीक से हुई यह खोज

वैज्ञानिकों ने स्टडी के लिए 10, 20 और 100 के नोटों की व्यापक तौर पर जांच की । यह स्टडी वैज्ञानिकों ने "A shotgun meta-genome sequencing approach" तकनीक के द्वारा की है । वैज्ञानिकों की यह नई पद्धति रोगाणुओं की पहचान करने में कारगर साबित पाई गयी और इससे काम्प्लेक्स डाटा भी इकट्ठा करने में मदद मिली ।

वाइरस, बैक्टीरिया, फंगस व प्रतिरोधक क्षमता को घटाने वाले जीन मिले

इस उन्नत तकनीक से वैज्ञानिकों को स्टडी के बाद इन नोटों में 78 रोगाणु और 18 ऐसे जीन मिले, जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कम करते हैं । वैज्ञानिकों की यह रिपोर्ट 'Plos One' नामक रिसर्च जर्नल (शोध-पत्रिका) के जून संस्करण में प्रकाशित हुई है ।

कितने खतरनाक है ये रोगाणु

इस रिसर्च स्टडी में नोटों पर 70 फीसदी यूकेरियोटा यानी फफूंद और प्रोटोजोआ मिले । इन नोटों पर 9 फीसदी बैक्टीरिया भी मिले । साथ ही एक फीसदी से कम वह वायरस मिला, जो जीव कोशिकाओं को नष्ट करता है । शोध में पाया गया कि नोटों की पतली सतह पर यह वायरस आसानी से जमा हो जाते हैं । ऐसे पतले कागज पर चिपककर वे लंबे समय तक उन पर बने रह सकते हैं । ये रोगाणु नोटों को इस्तेमाल करने वालों के लिए खतरनाक है और इनसे लोगों को जान तक का खतरा हो सकता है ।

नोट कहां से लिए गए

स्टडी के लिए सभी नोट ग्रॉसरी शॉप्स, केमिस्ट शॉप्स, स्नैक्स बार, हार्डवेयर शॉप, स्ट्रीट वेंडर आदि से लिए गये । वैज्ञानिकों का मानना है कि ये वे स्थान हैं जहां नोटों का रोजाना सबसे ज्यादा आदान-प्रदान होता है । चूंकि यहां नोट कई हाथों से गुजरने के बाद इन वेंडर्स तक पहुंचते हैं । इसलिए इन्हीं नोटों पर स्टडी की गई ।

कौन-कौनसे वैज्ञानिकों ने की यह स्टडी

रिसर्च करने वाले वैज्ञानिक सीएसआईआर एवं इंस्टीट्यूट ऑफ जिनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के हैं । इनमें साक्षी जलाली, समांथा कोहली, चित्रा लटका, सुगंधा भाटिया, शमशुद्दीन वेल्लारीकल, श्रीधर शिवासुब्बु, विनोद स्कारिया, श्रीनिवासन रामचंद्रन शामिल हैं ।

प्रचलन पर निर्भर करती है, रोगाणुओं की संख्या

रिपोर्ट के मुताबिक, बैक्टीरिया और वायरस की संख्या इस बात पर निर्भर करती है कि वह नोट कितने समय से प्रचलन में है । नोट जितना गला और पुराना होगा, उसके इन्फेक्टेड होने की संभावना उतनी अधिक होगी । इस समय भारत सहित दुनिया के कई अन्य देश इस स्टडी पर काम कर रहे हैं कि नोट कितने संक्रमित हैं ।

इससे पहले भी 2014 में प्रकाशित जनरल ऑफ रिसर्च इन बायोलॉजी की एक रिपोर्ट में भारतीय नोटों में रोगाणु पाये गए थे । इस रिपोर्ट के मुताबिक, मीट शॉप और फूड सेलर्स के अलावा बैंक, हॉस्पिटल, म्युनिसिपल कॉरपोरेशन में जो नोट चलन में आते हैं, वे भी ज्यादा संक्रमित होते हैं ।

किस देश के नोट कितने संक्रमित

नोटों पर की गई इसी तरह की स्टडी पिछले साल भी, एक अन्य जर्नल ‘पीर-रिव्यूड’ में प्रकाशित हुई थी। उस स्टडी में यह यह भी बताया गया था कि दुनियाभर में किस देश के नोट ज्यादा संक्रमित हैं । उस रिपोर्ट के अनुसार फिलिस्तीन के नोट 96.25 फीसदी, कोलंबिया 91.1 फीसदी, साउथ अफ्रीका के 90 फीसदी, सउदी अरब के 88 फीसदी और मेक्सिको के 69 फीसदी नोट संक्रमित हैं ।

समाधान क्या हैं ?

स्टडी करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि नोटों से फैलने वाले संक्रमण को रोकने के लिए प्लास्टिक करंसी का इस्तेमाल करना होगा । कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूके में पहले ही प्लास्टिक करंसी चलन में है । चूंकि, प्लास्टिक करंसी जल्दी से गलती नहीं है और उससे संक्रमण को आसानी से हटाया जा सकता है । साथ ही नोटों के प्रचलन को कम करके क्रेडिट और डेबिट कार्ड के ज्यादा इस्तेमाल से भी संक्रमण कम हो सकता है । क्रेडिट और डेबिट कार्ड ज्यादा लोगों के हाथों से नहीं गुजरता, इसलिए उनमें संक्रमण की संभावना कम होती है।

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