रोहिंग्या कैंप: ज़िंदगी से लड़ती 20 साल की फातिमा

कहते है वक़्त हर उस ज़ख्म का मरहम होता है, हो ज़ख्म न चाहते हुए भी ज़िन्दगी में गहरे उतर जाते है लेकिन वहीं कुछ जख्म ऐसे भी होते है, जो समय के साथ और ताजा होते जाते है. हम बात कर  रहे है 19 वर्षीय फातिमा की, जो म्यांमार से बीते साल हुई हिंसा में अच्छी ज़िन्दगी की चाह में भारत भाग कर आ गई. लेकिन यहां आकर ज़िन्दगी ने कुछ ऐसी करवट बदली की फातिमा के पास सिवाय अपने ज़ख्मो पर पछतावे के और कुछ बचा नहीं.

आखिरी साल म्यांमार में हुई हिंसा में करीब 6.6 मिलियन लोगो ने म्यांमार छोड़ा और करीबी देशों में जाकर रहने लगे, करीब 40 हजार लोग गैरकानूनी तरीके बॉर्डर पार कर भारत आ गए, उन 40 हजार में एक थी फातिमा, जो भारत आने से पहले अपने रिश्तेदार के द्वारा भारत में ही चंद कागज़ के नोटो में अपने बाप के उम्र के आदमी को बेंच दी गई जिससे उसकी शादी हुई. फातिमा बताती है कि, अपने बाप की उम्र का वो शख्स आये दिन उसे बिजली के तार से झटके देकर टार्चर करता था, साथ ही कभी घर से बाहर नहीं निकलने देता था. पिछले महीनें काफी प्रताड़ित करने के बाद उसका पति उसको उस वक़्त छोड़कर चला गया जब वो एक बच्चे की माँ बनने वाली थी. 

आज फातिमा दिल्ली के पास मेवात में रोहिंग्या कैम्प में अपनी बेटी के साथ रहती है. दो जून की रोटी की मोहताज फातिमा का कोई नहीं है सिवाय उसकी बेटी के. हालाँकि फातिमा अभी भी म्यांमार में रह रही अपनी माँ के संपर्क में है लेकिन अफसोस वो अपने देश जा नहीं सकती. पिछले साल आई एक रिपोर्ट के अनुसार कई रोहिंग्या लड़कियां आज वेश्यावृत्ति के जाल में न चाहते हुए भी फंसी हुई है, ऐसी कई दिल दहलाने वाली कहानियां रोहिंग्या कैम्प में आज भी ज़िन्दगी की चाह में कुचली जा रही है. स्तिथि काफी भयावह है, जो हमें एक इंसान होने के नाते सोचने पर मजबूर करती है कि, क्या हमें मानवता के नाते इनकी सामान्य ज़िन्दगी का हक दिलाने में इनकी मदद करनी चाहिए या चंद अपवादों के कारण सुरक्षा का हवाला देकर मुँह मोड़ना चाहिए?

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