नई दिल्ली: विदेशमंत्री एस जयशंकर ने बृहस्पतिवार को मल्टीलैटरिज्म (बहुपक्षवाद) को लेकर अपनी असहमति जताई साथ ही इस मुद्दे पर बड़े देशों को खरी-खरी सुनाई। उन्होंने स्पष्ट कहा कि, बहुपक्षवाद का अस्तित्व राष्ट्रीय हितों के साथ ही रह पाएगा। अवसर था दिल्ली में चल रहे रायसीना डायलॉग का, जिसके एक पैनल डिस्कशन में बृहस्पतिवार को विदेश मंत्री ने हिस्सा लिया। इस के चलते उन्होंने बहुपक्षवाद को लेकर स्वयं के राष्ट्रीय हित की आवश्यकता एवं महत्व को हाईलाइट किया। एस जयशंकर ने स्वतंत्रता के तुरंत बाद उपजे कश्मीर मुद्दे को लेकर भी अपना पक्ष रखा। उन्होंने कश्मीर मुद्दे को UN में ले जाने के नेहरू के दौर के फैसले का हवाला दिया तथा कहा कि इसकी वजह से थर्ड पार्टी के हस्तक्षेप सामने आया। राष्ट्रीय हित या बहुपक्षीय हितों को लेकर एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, 'स्वतंत्रता के पहले वर्ष में हमने बहुपक्षवाद पर विश्वास किया था तथा कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले गए थे, किन्तु इसके ऐसे नतीजे निकलेंगे यह नहीं सोचा गया था। इस फैसले का पाकिस्तान ने जियो-पॉलिटिकल एजेंडे के तहत दुरुपयोग किया तथा इसे विलय का मुद्दा बना दिया एवं सीमा विवाद से जोड़ दिया। वही इस घटना ने भारत को संयुक्त राष्ट्र की निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर दिए तथा बहुपक्षवाद के प्रति उसके विश्वास को कम कर दिया। यदि आपको लगता है कि ये बहुपक्षवाद है, वे हमेशा ऐसा करते हैं, किन्तु अब हम भी वह नहीं रहे हैं, जो थे। वक़्त के साथ हम भी बदले हैं। 'एस जयशंकर ने कहा कि, ऐसा नहीं है कि हम बहुपक्षवाद की खिलाफत करते हैं। बल्कि हम यह मानते हैं कि इसकी अपनी सीमाएं हैं। यह लोएस्ट कॉमन डिनोमिनेटर है। राष्ट्रीय हितों के साथ प्रतिस्पर्धाओं में यह हमेशा इसकी उपस्थिति रहेगी, यह हर मसले पर सभी देशों को एक साथ लाने में हमेशा सफल नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि, मैं इस बात से भी सहमत हूं कि राष्ट्रीय हित सर्वोपरि है। इसके सेंटिमेंट्स एवं एकजुटता की अलग जगह है। पटना में मचा बवाल! स्थायी नौकरी की मांग कर रहे ग्राम रक्षा दल के लोगों पर पुलिस ने किया लाठीचार्ज टर्म इंश्योरेंस लेते समय मेडिकल टेस्ट अनिवार्य क्यूँ होते हैं? नहीं रहे महाराष्ट्र के पूर्व CM मनोहर जोशी, 86 साल की उम्र में ली अंतिम सांस