लाहौर: भारत के मेरठ शहर में जन्मीं पाकिस्तान की मशहूर लेखिका और शायरा फहमीदा रियाज का बुधवार रात दुखद निधन हो गया। बता दें कि वे 73 साल की थीं और लंबे समय से बीमार चल रही थीं। उन्होने पाकिस्तान में महिलाओं के अधिकारों और लोकतंत्र के पक्ष में हमेशा आवाज उठाई। सैन्य तानाशाह जनरल जियाउल हक के शासन के दौरान उन्हें पाकिस्तान छोड़ना पड़ा था। उस दौरान उन्होने भारत में सात साल स्व-निर्वासित जीवन व्यतीत किया था। जियाउल हक के निधन के बाद वह पाकिस्तान लौट गई थीं। जम्मू कश्मीर: उमर अब्दुल्ला के चैलेंज के बाद, राम माधव ने वापिस लिया अपना बयान यहां बता दें कि साहित्य में रुचि रखने वाले मेरठ के एक परिवार में जुलाई 1945 में उनका जन्म हुआ था। पिता का तबादला सिंध प्रांत में होने के बाद वह हैदराबाद पाकिस्तान शहर में बस गई थीं। प्रगतिशील उर्दू लेखिका, शायरा और मानवाधिकार कार्यकर्ता के तौर पर पहचान बनाने वाली फहमीदा ने रेडियो पाकिस्तान और बीबीसी उर्दू के लिए भी काम किया था। होटल मैनेजर ने सुसाइड नोट में लिखा-मेरा पीएम मत कराना उन्होने 15 से ज्यादा किताबें लिखी थीं। उनकी गजलों का पहला संग्रह पत्थर की जुबान 1963 में प्रकाशित हुआ था। इसके बाद धूप, पूरा चांद और आदमी की जिंदगी प्रकाशित हुए। उन्होने जिंदा बहार, गोदावरी और कराची जैसे कई उपन्यास भी लिखे थे। वह अपनी क्रांतिकारी और परंपरा के विपरीत रचनाओं को लेकर ज्यादा चर्चित हुई थीं। 1973 में उनकी रचना बदन दरीदा को लेकर खूब हंगामा हुआ था। उन पर इसमें कामुकता का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया गया था। खबरें और भी बिलासपुर के तिफरा इलाके में टायर के ढेर में लगी आग केजरीवाल पर मिर्च फेंकने वाले ने सुनाई आपबीती, कहा पहले भी कर चुका हूँ मिलने की कोशिश चुनाव आयोग का बड़ा फैसला, अगर अधिक लोगों ने दबाया NOTA तो प्रत्याशी हो जाएगा अयोग्य