रामायण से जुडी कई कथाएं है जो आप सभी ने सुनी ही होंगी. ऐसे में आज हम आपको रामायण की वह कथा बताने जा रहे हैं जिसे सुनने के बाद आप सभी हैरान रह जाएंगे. आइए जानते हैं. यह कथा है सम्पाती की, जो अंगद और हनुमान के दर्शन कर दोबारा जीवित हो गए थे. आइए जानते हैं. कथा - राम के काल में सम्पाती और जटायु नाम के दो गरूड़ थे. ये दोनों ही देव पक्षी अरुण के पुत्र थे. दरअसल, प्रजापति कश्यप की पत्नी विनता के दो पुत्र हुए- गरूड़ और अरुण. गरूड़जी विष्णु की शरण में चले गए और अरुणजी सूर्य के सारथी हुए. सम्पाती और जटायु इन्हीं अरुण के पुत्र थे. ये दोनों विंध्याचल पर्वत की तलहटी में रहने वाले निशाकर ऋषि की सेवा करते थे और संपूर्ण दंडकारण्य क्षेत्र विचरण करते रहते थे. बचपन में सम्पाती और जटायु ने सूर्य-मंडल को स्पर्श करने के उद्देश्य से लंबी उड़ान भरी. सूर्य के असह्य तेज से व्याकुल होकर जटायु जलने लगे तब सम्पाति ने उन्हें अपने पंख ने नीचे सुरक्षित कर लिया, लेकिन सूर्य के निकट पहुंचने पर सूर्य के ताप से सम्पाती के पंख जल गए और वे समुद्र तट पर गिरकर चेतनाशून्य हो गए. चन्द्रमा नामक मुनि ने उन पर दया करके उनका उपचार किया और त्रेता में श्री सीताजी की खोज करने वाले वानरों के दर्शन से पुन: उनके पंख जमने का आशीर्वाद दिया. जामवंत, अंगद, हनुमान आदि जब सीता माता को ढूंढ़ने जा रहे थे तब मार्ग में उन्हें बिना पंख का विशालकाय पक्षी सम्पाति नजर आया, जो उन्हें खाना चाहता था लेकिन जामवंत ने उस पक्षी को रामव्यथा सुनाई और अंगद आदि ने उन्हें उनके भाई जटायु की मृत्यु का समाचार दिया. यह समाचार सुनकर सम्पाती दुखी हो गया. सम्पाती ने तब उन्हें बताया कि हां मैंने भी रावण को सीता माता को ले जाते हुए देखा. दरअसल, जटायु के बाद रास्ते में सम्पाती के पुत्र सुपार्श्व ने सीता को ले जा रहे रावण को रोका था और उससे युद्ध के लिए तैयार हो गया. किंतु रावण उसके सामने गिड़गिड़ाने लगा और इस तरह वहां से बचकर निकल आया. हुआ यूं था कि पंख जल जाने के कारण संपाती उड़ने में असमर्थ था, इसलिए सुपार्श्व उनके लिए भोजन जुटाता था. एक शाम सुपार्श्व बिना भोजन लिए अपने पिता के पास पहुंचा तो भूखे संपाती ने मांस न लाने का कारण पूछा तो सुपार्श्व ने बतलाया- 'कोई काला राक्षस सुंदर नारी को लिए चला जा रहा था. वह स्त्री 'हा राम, हा लक्ष्मण!' कहकर विलाप कर रही थी. यह देखने में मैं इतना उलझ गया कि मांस लाने का ध्यान नहीं रहा.' अर्थात सम्पाती ने तब अंगद को रावण द्वारा सीताहरण की पुष्टि की. सम्पाती रावण से इसलिये नहीं लड़ सका क्योंकि वह बहुत कमजोर हो चला था क्योंकि सूर्य के ताप से उनके पंख जल गए थे. चन्द्रमा नामक मुनि ने उन पर दया करके उनका उपचार किया और त्रेता में श्री सीताजी की खोज करने वाले वानरों के दर्शन से पुन: उनके पंख जमने का आशीर्वाद दिया था. सम्पादी ने दिव्य वानरों अंगद और हनुमान के दर्शन करके खुद में चेतना शक्ति का अनुभव किया और अंतत: उन्होंने अंगद के निवेदन पर अपनी दूरदृष्टि से देखकर बताया कि सीता माता अशोक वाटिका में सुरक्षित बैठी हैं. सम्पाति ने ही वानरों को लंकापुरी जाने के लिए प्रेरित और उत्साहित किया था. इस प्रकार रामकथा में सम्पाती ने भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अमर हो गए. क्या आप जानते हैं कौन है भोलेनाथ, ब्रह्मा और विष्णु भगवान के पिता? आखिर क्यों भोलेनाथ के जयकारे में बोला जाता है 'बम बम भोले' इस कारण से दयानन्द सरस्वती जी ने की थी आर्य समाज की स्थापना