मुंबई: शिवसेना (उद्धव गुट) के सांसद संजय राउत ने राम मंदिर और मंदिर-मस्जिद विवादों को लेकर ऐसा बयान दिया है, जिसने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। उन्होंने कहा कि राम मंदिर देश के इतिहास का एक आंदोलन था, जिसमें न केवल भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का योगदान रहा, बल्कि कांग्रेस ने भी इसमें भूमिका निभाई थी। राउत के इस बयान ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं, क्योंकि कांग्रेस पर हमेशा राम मंदिर आंदोलन का विरोध करने के आरोप लगे हैं। राउत का बयान अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिस पर लोग तरह तरह की प्रतिक्रिया दे रहे हैं। संजय राउत ने अपने बयान में कहा कि राम मंदिर आंदोलन केवल बीजेपी या आरएसएस तक सीमित नहीं था। इसमें शिवसेना, विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी), बजरंग दल और कांग्रेस ने भी योगदान दिया था। उन्होंने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और प्रधानमंत्री मोदी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि वे ही ऐसे लोगों को सत्ता में लाए हैं और अब उन्हें इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। लेकिन जब राउत से कांग्रेस के योगदान के बारे में पूछा गया, तो वे कोई ठोस उदाहरण नहीं दे पाए। कांग्रेस का इतिहास देखें तो राम मंदिर निर्माण के विरोध में उसके कई कदम सामने आते हैं। सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस सरकार ने हलफनामा देकर यह तक कहा था कि भगवान श्रीराम एक काल्पनिक पात्र हैं। अगर अदालत ने कांग्रेस की इस दलील को मान लिया होता, तो राम मंदिर का निर्माण संभव ही नहीं होता। सवाल यह उठता कि जो काल्पनिक हैं, उनके जन्मस्थान और मंदिर का क्या अस्तित्व हो सकता है? यही नहीं, कांग्रेस के नेता कपिल सिब्बल ने अदालत में बाबरी मस्जिद पक्ष का समर्थन किया और सुनवाई को बार-बार टालने की कोशिश की। पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने 1992 में यहाँ तक ऐलान किया था कि बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद उसे दोबारा बनवाया जाएगा। कांग्रेस नेताओं का झुकाव हमेशा बाबर की ओर दिखा है। जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी अफगानिस्तान जाकर बाबर की कब्र पर श्रद्धांजलि दे चुके हैं, लेकिन नेहरू-गांधी परिवार का कोई भी सदस्य आज तक अयोध्या में रामलला के दर्शन के लिए नहीं गया। हाल ही में, 2024 के लोकसभा चुनाव में जब समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद ने फैजाबाद (अयोध्या) सीट जीती, तो राहुल गांधी ने बयान दिया कि उन्होंने राम मंदिर आंदोलन को हरा दिया। इन तथ्यों के बावजूद संजय राउत का यह दावा कि कांग्रेस ने राम मंदिर आंदोलन में योगदान दिया, कई सवालों को जन्म देता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राउत का यह बयान शिवसेना (उद्धव गुट) और कांग्रेस के बीच गठबंधन की मजबूरियों का नतीजा हो सकता है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में देश में एकता और सद्भाव बनाए रखने पर जोर दिया था। उन्होंने कहा था कि रोज-रोज नए विवाद खड़े करके दुश्मनी नहीं बढ़ानी चाहिए। उन्होंने राम मंदिर को हिंदू भक्ति का प्रतीक बताया, लेकिन विभाजनकारी राजनीति से बचने की नसीहत भी दी। भागवत के इसी बयान के बाद संजय राउत ने उन पर तंज कसते हुए कहा कि वे और प्रधानमंत्री मोदी ही ऐसे लोगों को सत्ता में लाए हैं, इसलिए अब उन्हें इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। राउत ने इसके अलावा संसद में हुए धक्का-मुक्की कांड को लेकर भी मोदी सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी के खिलाफ बीजेपी द्वारा दर्ज कराए गए केस को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच को सौंपना दिखाता है कि सरकार विपक्ष को दबाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। राउत ने व्यंग्य करते हुए कहा कि मोदी सरकार चाहे तो इस मामले की जांच ईडी, सीबीआई या यहाँ तक कि अमेरिका की FBI से भी करवा सकती है। इन बयानों से साफ है कि संजय राउत का रवैया पूरी तरह से कांग्रेस के बचाव में था। हालाँकि, राम मंदिर आंदोलन में कांग्रेस के योगदान का कोई ठोस प्रमाण नहीं है। उल्टा, कांग्रेस का इतिहास राम मंदिर विरोधी गतिविधियों और बयानबाजी से भरा पड़ा है। संजय राउत के बयान ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या यह गठबंधन की मजबूरी है या कांग्रेस की छवि सुधारने की कोशिश? जनता को यह अच्छी तरह पता है कि राम मंदिर का निर्माण कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ संघर्षों का परिणाम था। ऐसे में राउत का बयान सच्चाई से ज्यादा राजनीतिक रणनीति लगता है। कुवैत में पीएम मोदी का भव्य स्वागत, प्रधानमंत्री बोले- ये दौरा दोनों देशों की मित्रता को मजबूत करेगा चौकीदार बनकर आया वाजिद, फिर हड़प लिया पूरा मंदिर, 50 साल लग गए कब्जा छुड़ाने में.. तमिलनाडु में शान से निकला 'आतंकी' का जनाजा, हज़ारों मुस्लिम हुए शामिल, लेकिन विरोध करने वाले गिरफ्तार