42 लाख की आबादी वाले और महज तीन दशक से भी कम समय पहले आजाद हुए एक गुमनाम से देश क्रोएशिया ने फीफा वर्ल्ड कप के 21वें संस्करण में फ्रांस के खिलाफ फाइनल क्या खेल लिया पूरा भारत खुद को कोसने लगा. यह कोई बात नहीं है. अब वो अच्छा खेले और हमें फुटबॉल नहीं आता तो उसमे हमारी गलती है क्या? एक दिग्गज क्रिकेटर ने कहा कि भारत के छोटे से शहर की आबादी से भी कम आबादी वाला देश फीफा में फाइनल खेल रहा है और हम (भारत) हिन्दू-मुस्लिम, हिन्दू-मुस्लिम खेल रहे है. अब उन्हें कौन समझाए कि ये फुटबॉल से बढ़ा खेल है. इसके जरिये देश की सियासत चलती है. फुटबॉल से राजनीति का क्या ताल्लुक. बात सिर्फ फुटबॉल की नहीं है. क्रोएशिया देश की तासीर ही गलत है.उसका हमसे क्या मुकाबला. छोटा सा देश, मुट्ठीभर लोग, जरा सा दायरा और अदनी सी जीडीपी इन सब के बीच उसे आजाद हुए भी तो 28 साल हो गए है. सबसे बड़ी बात वहां लोगों के पास मुद्दे भी नहीं है, जिनमे उलझा जाये. पूरे 28 साल सिर्फ और सिर्फ ईमानदारी से आगे बढ़ने पर ध्यान देगा तो कोई भी फीफा का फाइनल खेल लेगा. वो क्या जाने मुद्दे और मुद्दों की सियासत के बारे में. बस लगा हुआ है विकसित होने की होड़ में. विकास हम भी कर रहे है. तभी तो पिछले पचास सालों से देश के सभी बड़े मुद्दे जस के तस नहीं है अब और गंभीर हो गए है और सोशल मीडिया के जरिये सभी की जुबान पर है. यह विकास नहीं तो क्या है. आज हर कोई मुद्दों पर राजनीति करना सीख गया है. आजादी के समय क्रोएशिया में भी भूखमरी, गरीबी, लाचारी, दुष्कर्म, कानून व्यवस्था, जैसी समस्याएं रही थी पर वहां के राजनेता सियासत में कमजोर रहे और उन्होंने सभी समस्याएं या तो सुलझा ली या सुलझाने में लगे हुए है. यहाँ हम चैम्पियन है, हमने मुद्दे को बनाये रखा, ज्वलंत रखा और उन्हें भरपूर जिया. साल-दर-साल हमने मुद्दों को जड़ करने का मौका दिया, जख्म को नासूर बनाया और इलाज के नाटक के जरिये देश को चलाने का वो कारनामा किया जो क्रोएशिया नहीं कर पाया. फीफा के फाइनल में पहुंचना चमत्कार नहीं है चमत्कार है विकास की उस सच्ची सोच से खुद को और देश को दूर बनाये रखना ताकि पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे चूल्हे मुद्दों से सुलगते देश के अंगारो से जलते रहे. क्रोएशिया का क्या वो तो नादान है. आगे बढ़ने की सोच रखने वाला कही का. मगर सच तो यही है क्रोएशियाई तासीर को तरस रहा है भारत बात फुटबॉल की नहीं है............ इसे भी देखें - कटाक्ष: सदन में हंगामा भी जरुरी है भाई देख तेरी गंगा की हालत क्या हो गई मोदी, कितना बदल गया रे तू.. satire : जब सैंया भये कोतवाल तो जियो धन धना धन...