कटाक्ष: दलितों के चूल्हों पर रोटी सेंकने को तैयार राजनेता

दलित एक्ट को लेकर सियासत एक बार फिर गरमा गई है. जैसे-जैसे चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, राजनितिक पार्टियां अपने फायदे के लिए आवाम को विभाजित कर उन्हें रिझाने में लगी हुई है. अब विभाजन भी जरुरी है, क्योंकि वे जानते हैं कि वोट जनता से नहीं मिलता, वोट तो मिलता है दलित से, मुस्लिम से,राजपूत से और इसी तरह के अन्य सैकड़ों समुदायों से, शायद "एक लकड़ी के टूटने और लकड़ी के गट्ठे के ना टूटने" की कहानी उन्होंने ज्यादा ध्यान से पढ़ी है. इसी सीक्रेट को जानते हुए राजनेता चुनाव के समय हर समुदाय को एक झुनझुना पकड़ा देते हैं और फिर आवाम उस झुनझुने की आवाज़ पर थिरकती रहती है और राजनेता मौज करते हैं. 

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अभी हाल ही में दलित समुदाय को रिझाने के लिए राजनितिक पार्टियां आमने सामने आ गई हैं. दलित एक्ट के  कड़े प्रावधानों को अध्यादेश के जरिये बहाल करने की लोजपा की मांग का अब जनता दल (यूनाईटेड) ने भी समर्थन कर दिया है. इससे पहले लोजपा नेता रामविलास पासवान ने 9 अगस्त से पहले एके गोयल को एनजीटी के चेयरमैन पद से हटाने और एससी-एसटी एक्ट पर अध्ययादेश लाने का अल्टीमेटम दिया था. जस्टिस एके गोयल का गुनाह ये था कि उन्होंने  दलित उत्पीड़न कानून के गैर जमानती प्रावधान को खत्म कर देने के फैसले का समर्थन किया था. ये फैसला 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने लिया था, जिसमे एके गोयल शामिल थे.

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इस मुद्दे पर गैर भाजपाई दल, भाजपा को घेरने में लगे हुए हैं, इसमें से कई दल ऐसे भी हैं जो एनडीए में शामिल हैं, लेकिन दलित वोटों की खुशबु उन्हें भाजपा की खिलाफत करने को मजबूर कर रही है. जेडीयू के महासचिव किसी त्यागी ने तो भाजपा को चेतावनी देते हुए कहा है  की हमे दलित हितों के लिए बनाए गए कानून की रक्षा करना चाहिए, क्योंकि अगर 2019 चुनाव में विरोध के चलते दलित समुदाय ने वोट ही नहीं किया तो एनडीए की दाल नहीं गल पाएगी. सही भी है, क्योंकि 2019 चुनाव में भी जनता वोट नहीं करेगी, समुदाय वोट करेंगे. इसलिए समुदायों को मनाना जरुरी है, मैं तो उस दिन का इंतज़ार कर रहा हूँ, जब हर घर के लिए अलग से कानून बनाए जाएंगे और हर परिवार सिर्फ अपनी मांगे पूरी होने पर ही वोट करेगा, वरना विरोध प्रदर्शन. 

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