सत्यजीत रे जो भारतीय सिनेमा के लिए क्या थे उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता. 23 अप्रैल 1992 को भारतीय सिनेमा का ये सितारा इस दुनिया से चला गया. सत्यजीत रे की जिनके बिना भारतीय सिनेमा की कल्पना करना भी मुश्किल है. उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए एक प्रसिद्ध जापानी फिल्ममेकर ने कहा था कि सत्यजीत रे का सिनेमा न देखना एक ऐसी दुनिया में रहने जैसा है जहां आप न सूरज दख सकते हैं न चांद. आपको बता देते हैं उनके बारे में कुछ बातें. रे को बचपन में स्केचिंग का शौक था और टीनएज में उनकी रुचि वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक की ओर मुड़ गई. 1943 में एक ऐड कंपनी में उन्होंने आर्टिस्ट की नौकरी ले ली. काम के सिलसिले में वे जब भी विदेश जाते थे तो खूब सिनेमा देखते थे. यहीं से उन्हें खुद फिल्में बनाने की प्रेरणा मिली. उनकी पहली फिल्म थी 'पाथेर पांचाली'. इस पहली फिल्म के लिए उन्होंने जितना संघर्ष किया फिल्म ने उतना ही धमाल भी मचाया. भारतीय सिनेमा के इतिहास में 'पाथेर पांचाली' को सबसे दमदार डेब्यू फिल्मों में से एक माना जाता है. शूटिंग के लिए फंड जुटाने के लिए रे को अपनी पत्नी के गहने गिरवी रखने पड़े थे. सीमित संसाधन होने के बावजूद वह इस फिल्म से हर तरह की भावनाओं को छूने में कामयाब रहे थे. बाद में उन्होंने इसके दो सीक्वल भी बनाए, 'अपू का संसार' और 'अपराजितो'. हॉलिवुड के कई फिल्ममेकर्स सत्यजीत रे का नाम आज भी बड़े आदर से लेते हैं. हॉलिवुड की कई सफल फिल्मों का श्रेय भी सत्यजीत रे को जाता है. ये फिल्में सत्यजीत रे की कहानियों और फिल्मों से प्रेरित हैं. इनमें 'टैक्सी ड्राइवर', 'फोर्टी शेड्स ऑफ ब्लू', 'E.T. द एक्सट्रा टेरेस्ट्रअल', जैसी चर्चित फिल्में शामिल हैं. यही नहीं भारत में भी कई शॉर्ट फिल्में सत्यजीत रे की कहानियों पर आधारित हैं. हालांकि 80 के दशक में उनकी फिल्में रोचक तो रहीं लेकिन वे उतनी दमदार साबित नहीं हुई थीं जितनी उनकी पहले की फिल्में हुआ करती थीं. उनकी सेहत ने उनका साथ देना छोड़ दिया था और उनका चलना-फिरना भी सीमित हो गया था. 23 अप्रैल 1992 को उनका निधन हो गया.