नई दिल्ली : जजों की कमी की वजह से लंबित प्रकरणों का निपटारा नहीं होने और हाईकोर्ट में जरूरत से 60 प्रतिशत कर्मचारी कम होने की समस्या से जल्द ही छुटकारा मिल जाएगा,क्योंकि इससे जुड़े मेमोरेंडम ऑफ प्रोसिजर (एमओपी) को सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दे दी है. इस पर सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच करीब एक साल से टकराव चल रहा था.एमओपी को अब केंद्र की मंजूरी मिलेगी, फिर इसे लागू करने के लिए भेजा जाएगा. उल्लेखनीय है कि इस मामले में चीफ जस्टिस जे. एस. खेहर की अगुआई वाला कॉलेजियम एमओपी में न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा वाली कंडिका जोड़ने को तैयार हो गया है, बल्कि कॉलेजियम सुप्रीम कोर्ट और सभी हाईकोर्ट में सचिवालय बनाने के अपने विरोध से भी पीछे हट गया है. बता दें कि केंद्र इसमें सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों कि नियुक्ति के लिए उनकी योग्यता को भी जोड़ने पर अड़ा था. इस कॉलेजियम में जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस जे. चेलामेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस मदन बी. लोकुर भी शामिल हैं. बता दें कि जस्टिस खेहर की अगुआई वाली संवैधानिक पीठ ने अक्टूबर 2015 में एनजेएसी (नेशनल ज्युडिशियल अप्वाॅइंटमेंट कमीशन) पर रोक लगा दी थी. साथ ही दिसंबर में केंद्र सरकार को चीफ जस्टिस के साथ मशविरा कर नया एमओपी तैयार करने को कहा था. तभी से एमओपी का ड्राफ्ट कॉलेजियम और सरकार के बीच फंसा था. दोनों में से कोई भी इस पर झुकने को तैयार नहीं था.लेकिन खेहर के मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद से परिस्थितियों में परिवर्तन हुआ. यह भी पढ़ें सुप्रीम कोर्ट ने पर्रिकर के शपथ ग्रहण समारोह पर रोक लगाने से किया इंकार न्यायाधीश करनन ने कहा दलित होने के कारण झेलना पड़ रही कार्रवाई