नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने अपने सदस्यों से बिना परामर्श लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए प्रतीक चिह्न और 'लेडी जस्टिस' की प्रतिमा में बदलाव के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया है। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल की अध्यक्षता वाले SCBA ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि न्यायिक प्रशासन में बार एसोसिएशन बराबर का हिस्सा है, लेकिन इन महत्वपूर्ण बदलावों पर उनकी राय नहीं ली गई। नई 'लेडी जस्टिस' प्रतिमा की आँखों से पट्टी हटा दी गई है और उनके एक हाथ में तलवार की जगह संविधान ले लिया है, जिससे यह संदेश दिया गया है कि भारत का कानून न तो अंधा है और न ही दंडात्मक। पारंपरिक तौर पर न्याय की देवी की आँखों पर पट्टी और एक हाथ में तलवार न्याय की निष्पक्षता और कानून की शक्ति का प्रतीक मानी जाती थी, लेकिन नई प्रतिमा में आँखें खुली रखी गई हैं, जो यह दर्शाता है कि नया भारत कानून को अंधा नहीं मानता। SCBA ने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट ने ये एकतरफा फैसले बिना बार से चर्चा किए किए हैं, और वे इन बदलावों के पीछे के तर्क से अनभिज्ञ हैं। एसोसिएशन ने इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट की लाइब्रेरी में प्रस्तावित संग्रहालय पर भी आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि बार के सदस्यों के लिए एक बेहतर कैफे-सह-लाउंज की मांग की गई थी, क्योंकि वर्तमान कैफेटेरिया उनकी जरूरतों को पूरा नहीं कर रहा है। SCBA का मानना है कि प्रस्तावित संग्रहालय पर काम शुरू हो चुका है, जबकि उनकी आपत्ति के बावजूद इस दिशा में कोई विचार नहीं किया गया। 2012 से इनकम टैक्स क्यों नहीं भर रहे रॉबर्ट वाड्रा? बाकी है करोड़ों का आयकर इंदौर के पाकीजा शोरूम पर नगर निगम ने लिया ये बड़ा एक्शन इन लोगों को 3 साल तक मिलेगा मुफ्त गैस सिलेंडर, धामी सरकार का फैसला