नई दिल्ली: राजद्रोह कानून (Sedition Law) पर रोक लगाने के लगभग 7 माह बाद, सर्वोच्च न्यायालय, ब्रिटिश काल के दंडात्मक कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज सुनवाई करने वाला है। शीर्ष अदालत ने विगत 11 मई को एक अभूतपूर्व आदेश के तहत पूरे देश में राजद्रोह के मामलों में सभी कार्यवाहियों पर तब तक के लिए रोक लगा दी थी, जब तक कोई उचित सरकारी मंच इसका पुन: परीक्षण नहीं कर लेता। शीर्ष अदालत ने केंद्र एवं राज्य सरकारों को देश की आज़ादी के पहले के इस कानून के तहत कोई नई प्राथमिकी दर्ज नहीं करने के निर्देश भी दिये थे। प्रधान न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पी एस नरसिम्हा की बेंच ने कानून के खिलाफ एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया द्वारा दायर याचिका समेत 12 याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है। बता दें कि, इंडियन पीनल कोड की धारा (IPC) 124ए (राजद्रोह) के तहत अधिकतम सजा आजीवन करवास का प्रावधान है। इसे देश की स्वतंत्रता के 57 वर्ष पूर्व तथा IPC बनने के करीब 30 साल बाद, 1890 में इसे दंड संहिता में शामिल किया गया था। स्वतंत्रता मिलने से पहले के समय में बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ इस कानून का इस्तेमाल किया गया था। पूर्व प्रधान न्यायाधीश (CJI) एन वी रमण की अध्यक्षता वाली बेंच ने आदेश दिया था कि FIR कराने के अलावा, पूरे देश में राजद्रोह संबंधी कानून के तहत चल रही जांचों, लंबित मुकदमों और सभी कार्यवाहियों पर भी रोक रहेगी। अदालत ने कहा था कि, IPC की धारा 124ए (राजद्रोह) की कठोरता मौजूदा सामाजिक परिवेश के अनुरूप नहीं है। 'मर्द तो करते ही रहता है...', नितीश कुमार के बयान पर भड़की भाजपा, कहा - माफ़ी मांगें सीएम 'भारत जोड़ो यात्रा की जन सुराज से कोई तुलना नहीं', PK का आया बड़ा बयान जोशीमठ: सीएम धामी से पीएम मोदी ने ली जानकारी, नुकसान के बाद विस्थापन पर बना प्लान