भगवान परशुराम में मिलते है हर और हरि के दर्शन

इस कल्प में आठ लोगों को चिरंजीव होने का वरदान है। जिसमें भगवान श्री हनुमान, अश्वत्थामा के साथ भगवान परशुराम भी शामिल हैं। माना जाता है कि भगवान परशुराम कहीं तपस्या में लीन रहते हैं। महाभारतकाल में महर्षियों में ये अत्यंत पूज्य रहे हैं आज भी भगवान परशुराम का पूजन किया जाता है। अक्षय तृतीया को भगवान परशुराम की जयंती मनाई जाती है। इस दिन देशभर में श्री परशुराम शौर्य यात्रा के साथ ही भगवान परशुराम का पूजन भी किया जाता है। 

तो दूसरी ओर ब्राह्मण समाज विभिन्न आयोजन करता है। दरअसल भगवान परशुराम को श्री हरिविष्णु के 6 ठे अवतार के तौर पर माना जाता है। भगवान ने इस अवतार में अपने आराध्य भगवान शिव की शक्ति को परशु के तौर पर लिया है। इनका नाम परशुराम इसलिए भी पड़ा क्योंकि इन्होंने फरसा धारण कर रखा है। इसी फरसे से इन्होंने समुद्र तक को पीछे हटने के लिए विवश कर दिया था वहीं क्षत्रियों के अधर्मी होने और अत्याचारी होने पर इन्होंने धरती को क्षत्रिय विहिन कर दिया था। 

जमदग्नि ऋषी और मां रेणुका की संतान भगवान परशुराम ने घोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया। जिसके बाद भगवान शिव ने उन्हें दीव्य अस्त्र परशु प्रदान किया। जिसके बाद वे राम से परशुराम हो गए। भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया पर हुआ था। इनकी शस्त्र शक्ति को अमिट कहा जाता है। उन्होंने ऋषी जमदग्नि की आज्ञा से अपनी माता का वध किया था। जिसके बाद उन्होंने इसकी मुक्ति का उपाय भी किया। भगवान परशुराम के स्मरण में प्रतिवर्ष विभिन्न क्षेत्रों से यात्राऐं निकाली जाती हैं।

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