सरकारी कर्मचारी या अफसर का नाम लेते ही ज्यादातर उनकी उदासीनता, बेमतलब का रौब, कुर्सी का घमंड, इंसान को इंसान न समझना और कामचोरी के किस्से याद आने लगते है. यह धारणा यु ही नहीं है. पूर्व में सरकारी अफसरों के कारनामे खुद इसके गवाह है, मगर इन सब के बीच में कभी कभी कुछ इसे अफसर देखने को मिल जाते है जो अपने काम, अंदाज, अपनी सादगी से पुराने सभी जख्मों पर मरहम एक पल में ही लगा देते है. हम बात कर रहे है शहडोल कलेक्टर अनुभा श्रीवास्तव की . सादगी और जन सेवा में तत्पर महिला कलेक्टर अनुभा श्रीवास्तव अपने कार्यालय में जन सुनवाई में आए लोगों को खुद अपने हाथ से शरबत पिला रही हैं. उनके दफ्तर में जो भी आता है पहले वे उसका कुशल क्षेम पूछती है, अदब से आव भगत कर उसका दुखड़ा सुनते हुए उसे खुद शरबत पिलाती है. जिसके बाद दुखियारी जनता का आधा दुःख यु ही दूर हो जाता है. क्योकि सरकारी दफ्तर और अफसर की जिस परिभाषा को लेकर जनमानस उनके ऑफिस पहुंचते है, होता ठीक उसके उलट है जो एक मिसाल है. भीषण गर्मी में आम लोगों की इस तरह सेवा वाकई क़ाबिले तारीफ है. ऐसी कलेक्टर को हर कोई साधूवाद कर रहा है और उम्मीद है कि वे इन लोगों की शिकायतों पर भी इसी मानवीयता से कार्रवाई करेंगी. साथ ही ये उम्मीद भी की जा रही है कि काश अन्य सरकारी अधिकारी भी इससे प्रेरणा लेकर अगर उनके इस गुण को आत्मसात करे परिभाषाएं काफी सुधरी हुई प्रतीत हो सकती है . मोदी के चार साल : उन्नाव और कठुआ गैंग रेप पर मोदी चुप क्यों रहे ? बीजेपी विधायक का विवादित तर्क, हम मस्जिद नहीं जाते, वे लोग मंदिरों में क्यों आते हैं विकास कार्यों को लेकर सीकर में दो राजनेता भिड़े