धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक कहा जाता है कि पीपल के पेड़ की पूजा करना और उसकी परिक्रमा करने से शनि की पीड़ा झेलनी नहीं पड़ती है ।इसके साथ ही एक पौराणिक कथा के मुताबिक पीपल का पेड़ भगवान शनि को निकल गया था। वहीं आज हम आपको बताते हैं, आखिर शनि देव इसके बावजूद भी कैसे पीपल के पेड़ पर मेहरबान हुए। इसके साथ ही कथाओं की मानें तो पीपल को भगवान शनि का वरदान मिला था। राक्षस बन रहे थे ऋषि मुनि के यज्ञ में बाधा कथाओं की मानें तो अगस्त्य ऋषि दक्षिण दिशा में अपने शिष्यों के साथ गोमती नदी के तट पर गए और सत्रयाग की दीक्षा लेकर एक वर्ष तक यज्ञ करते रहे। उस समय स्वर्ग पर राक्षसों का राज था। राक्षसों ने बदला रूप कैटभ नाम के राक्षस ने पीपल का रूप लेकर यज्ञ में ब्राह्मणों को परेशान करना शुरू कर दिया और ब्राह्मणों को मारकर खा जाते थे। जैसे ही कोई ब्राह्मण पीपल के पेड़ की टहनियां या पत्ते तोड़ने जाता है तो राक्षस उनको खा जाते। शनि देव से मदद मांगी दिनभर अपनी संख्या कम होते देख ऋषि मुनि मदद के लिए शनि देव के पास गए। इसके बाद शनि देव ब्राह्मण का रूप लेकर पीपल के पेड़ के पास गए। वहीं पेड़ बना राक्षस शनि देव को साधारण ब्राह्मण सझकर खा गया। इसके बाद भगवान शनि ने उसका पेट फाड़कर बाहर निकले और उसका अंत किया। प्रसन्न होकर दिया वरदान राक्षस का अंत होने से प्रसन्न ऋषि मुनियों ने शनि देव को बहुत धन्यवाद दिया। शनि देव ने भी प्रसन्न होकर कहा कि शनिवार के दिन जो भी पीपल के पेड़ को स्पर्श करेगा, उसके सभी कार्य पूरे होंगे। वहीं जो भी व्यक्ति इस पेड़ के पास स्नान, ध्यान, हवन और पूजा करेगा, उसे मेरी पीड़ा कभी भी झेलनी नहीं पड़ेगी। 20 मार्च राशिफल: इन राशि के लोगो को मिलेगी काम में सफलता 25 मार्च को है गुड़ी पड़वा का पर्व, पढ़िए कथा 25 मार्च से शुरू होगा नया संवत्सर 2077