शनिदेव को कर्मों का फल देने वाला देवता माना जाता है। वहीं उनसे जुडी कई कथा और कहानियां है जिन्हे लोगों को पढ़ना या सुनना चाहिए। अब आज हम आपको वह कथा बताने जा रहे हैं जब शनिदेव ने सूर्य-इंद्र को परास्त कर जीता था देवलोक। कथा- शनिदेव अपनी माता छाया की मृत्यु के बाद काकलोक में अपने वाहन काकोल के घर रहने लगे थे, लेकिन इस बीच इंद्र ने शनि को मारने के लिए सूर्यपुत्र यम को मोहरा बनाकर वध का प्रयास किया, लेकिन दोनों के बीच सामंजस्य के चलते माता संध्या के अपमान का विवाद निपट गया। तभी इंद्र ने काकोल की मां को भस्म कर दिया, जिससे भड़के शनि ने इंद्र के सीने पर प्रहार कर पस्त कर दिया। साथ ही देवताओं को दंड देने का निर्णय कर लिया। राहु के प्रभाव में आने के बाद शनि का रूप बदल गया और वह दंडनायक बन गए, जो न सिर्फ क्रोधी बल्कि विनाशक भी हैं। इसके चलते उन्होंने देवराज को इंद्रलोक छोड़ने की चेतावनी देते हुए सभी देवताओं को देवलोक छोड़ देने के लिए ललकारा। देवताओं के प्रमुख होने के चलते सूर्यदेव ने शनि की युद्ध की चुनौती स्वीकार कर ली, लेकिन रणभूमि में सूर्य समेत कोई देव शनि के प्रकोप के आगे टिक नहीं सका और सूर्यदेव शनि से परास्त हो गए। युद्ध खत्म होने पर शनि ने देवराज का मुकुट छीनकर सूर्य, इंद्र को बंधक बना लिया। इस बीच दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने शनि को सहयोग का वादा करते हुए देवलोक पर अधिपत्य करने का लोभ दर्शाया और राहु की मदद से शनि को देवलोक जीतने के लिए अपने समर्थन का ऐलान कर दिया। दैत्यलोक में शनि जब दैत्यगुरु शुक्राचार्य से मिलने गए तो उनके मंसूबे सुनकर इंद्र भड़क उठे। उन्होंने शुक्रचार को चेताया कि वह भी देवताओं की मानसिकता से अलग नहीं है। उनका शनि को किया गया सहयोग, एक लाभ से प्रेरित था, जो सिर्फ स्वार्थ हो सकता है। यह सुनकर शुक्राचार्य चौंक गए। शनि ने चेताया कि देवलोक जीतने के बाद असुरों को भी उनके कर्मों का दंडा देंगे। वह उनके दरवाजे पर भी दस्तक देंगे और सभी को उनके कमों का फल जरूर मिलेगा। शनि देव ने राहु को भी चेताया कि अगर वह यहां वहां लाभ के लिए भटकते रहे तो वह उन्हें भी दंडित करेंगे। जानिए आखिर क्यों रविवार को नहीं तोड़ी जाती तुलसी और कीन्हे नहीं की जाती अर्पित? आखिर क्यों मकर संक्रांति पर खाते हैं खिचड़ी?, प्रचलित है ये कथा घुटनो के दर्द के करक होते हैं यह गृह, निजात पाने के लिए करें यह उपाय