उज्जैन: हिंदू धर्म में पूर्णिमा तिथि का बेहद खास महत्व है। प्रत्येक मास की पूर्णिमा का अपना अलग महत्व होता है, किन्तु कुछ पूर्णिमा बहुत ही श्रेष्ठ मानी जाती हैं। अश्विन माह की पूर्णिमा उन्हीं में से एक है, जिसे शरद पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस साल शरद पूर्णिमा 19 अक्टूबर को आ रही है। पंचांग भेद के चलते कुछ स्थानों पर 20 अक्टूबर को भी ये पूर्णिमा मनाई जाएगी। इस पूर्णिमा पर रात्रि में जागरण करने व पूरी रात चांदनी रात में रखी खीर को सुबह भोग लगाने का काफी महत्व है। इसे कोजागर पूर्णिमा भी कहते हैं। देवी लक्ष्मी आती हैं धरती पर:- धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, शरद पूर्णिमा की रात मां लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं। इसके साथ ही माना जाता है कि इस रात को जो मां लक्ष्मी की सच्चे मन से पूजा करता है, उस पर देवी की कृपा होती है। रात को खीर बनाकर खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखें उसके बाद अगले दिन सुबह खीर का सेवन करने की भी परंपरा है। शरद पूर्णिमा का महत्व:- - इस पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा इसलिए इसे कहा जाता है, क्योंकि इस समय सुबह और सांय और रात्रि में ठंड का अहसास होने लगता है। चौमासे यानि भगवान विष्णु जिसमें सो रहे होते हैं, वह वक़्त अपने अंतिम चरण में होता है। - मान्यता है कि शरद पूर्णिमा का चंद्रमा अपनी सभी 16 कलाओं से पूर्ण होकर अपनी किरणों से रात भर अमृत बरसाता है। जो कोई इस रात्रि को खुले आसमान में खीर बनाकर रखता है और प्रात:काल उसका सेवन करता है उसके लिये यह खीर अमृत के समान होती है। इसे खाने से कई रोगों में राहत मिलती है। - पौराणिक कथाओं के मुताबिक, शरद पूर्णिमा इसलिए भी ख़ास है क्योंकि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचा था। इसलिये इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। माता लक्ष्मी की कृपा से भी शरद पूर्णिमा जुड़ी है, मान्यता है कि माता लक्ष्मी इस रात्रि भ्रमण पर निकलती हैं और जो उन्हें जागरण करते हुए मिलता है उस पर अपनी कृपा बरसाती हैं। पापांकुशा एकादशी को जरूर पढ़े यह कथा, होगी स्वर्ग प्राप्ति 3 राशियों के लिए अच्छा है दिन आज इस आरती से करें माँ चंद्रघंटा को खुश