थरूर ने साहित्यकारों के पुरस्कार लौटाने को बताया गलत

तिरूवनंतपुरम : उत्तरप्रदेश के दादरी में उपजे सांप्रदायिक तनाव और दूसरे मामलों को लेकर साहित्यकारों द्वारा अपने सम्मान और पुस्कार लौटाने की बात को लेकर अब पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने कहा कि लेखकों को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में लड़ने का पूरा अधिकार है लेकिन इस तरह से पुरस्कार लौटाना सही नहीं है। यह तो सम्मान का अनादर करने जैसा है। उन्होंने एक समारोह में कहा कि यदि व्यक्तिगततौर पर कहा जाए तो यह बेहद अफसोसजनक है।

लेखकों के धड़े ने अकादमी पुरस्कार लौटाते हुए कहा कि यह पुरस्कार बुद्धिमत्ता, साहित्यिक, सृजनात्मक और अकादमिक गुणों को दर्शाता है। साहित्य अकादमी एक राजनीतिक संस्था नहीं है। मगर हमारी चिंताऐं राजनीतिक हैं। इस बात को लेकर लेखकों में भ्रम है और यह नहीं होना चाहिए। किसी भी व्यक्ति को स्वतंत्रता के लिए खड़ा होना जरूरी है। 

मगर उन्हें किसी के सम्मान का अनादर नहीं करना चाहिए। यह सम्मान केवल सरकारों या संस्थानों द्वारा दिया गया नहीं होता है। यह तो समाज द्वारा उनकी उपलब्धियों को दिया जाने वाला सम्मान ही है। ऐसे में इस तरह के सम्मानों को वापस नहीं किया जाता। पूर्व केंद्रीय मंत्री थरूर स्वयं ही एक अच्छे लेखक और स्तंभकार हैं। 

चिंताओं को लेकर लेखक न्याय संगत हैं। लेखन में सृजनात्मकता को बढ़ावा देने के लिए यह नैतिक अनिवार्यता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संविधान में दिया गया कोई काल्पनिक अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि लेखकों को साहित्य अकादमी में असंतोष हो सकता है।

ऐसे मसले पर विचारों की समीक्षा का दबाव अकादमी पर बनाया गया। एमटी वासुदेवन नायर, पाॅल जचारियार और सुगाता कुमारी समेत मलयालम भाषा के लेखकों द्वारा अपने पुरस्कार वापस नहीं किए गए हैं। वे भी स्वतंत्रता की बात करते हैं मगर उनमें इसे लेकर कोई दो राय नहीं है। राजनीतिक प्रक्रिया उदारता की संभावना को संकुचित करती है। 

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