मानवता पर बेजोड़-बेतोड़ शायरी

1. जन्नत में सबकुछ है मगर मौत नहीं, धार्मिक किताबों में सब कुछ है मगर झूठ नहीं, दुनिया में सब कुछ है लेकिन सुकून नहीं, इंसान में सब कुछ है मगर सब्र नहीं...

 

2. मानव को मानव से जोड़ें, संकीर्णता को हम छोड़ें, निर्माण करें हम प्रेम फूलों का, नफरत की दीवारें तोड़ें, प्रेम भाव से सबको देखें, हर कोई आँख का तारा हो, प्रेम में डूबा, प्रेम से महका अपना जीवन सारा हो...

 

3. सो सुख पाकर भी सुखी ना हो, पर एक गम का दुःख मनाता है, तभी तो कैसी करामात है कुदरत की, लाश तो तैर जाती है पानी में, पर जिंदा आदमी डूब जाता है...

 

4. इंसानियत इन्सान को इंसान बना देती है, लगन हर मुश्किल को आसान बना देती है, वरना कोन जाता मंदिरों में पूजा करने, आस्था ही पत्थरों को भगवान बना देती है...

 

5. क्या भरोसा है ज़िन्दगी का, इंसान बुलबुला है पानी का, जी रहे हैं कपड़े बदल-बदल कर, एक दिन एक कपड़े में ले जाएंगे कंधे बदल कर...

 

6. खुशियाँ कम और अरमान बहुत हैं, जिसे भी देखिये यहाँ हैरान बहुत है,

करीब से देखा तो है रेत का घर, दूर से मगर शान बहुत है,

कहते हैं सच के साथ कोई नहीं, आज तो झूठ की आन-बान बहुत है,

मुश्किल से मिलता है शहर में आदमी, यूँ तो कहने को इंसान बहुत हैं,

तुम शौक से चलो राह-ए-वफ़ा लेकिन, ज़रा संभल के चलना तूफ़ान बहुत हैं,

वक़्त पे ना पहचाने कोई ये अलग बात है, वैसे तो शहर में अपनी पहचाने बहुत हैं...

कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया

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