हटा कर जुल्फें चेहरे से न छत पर शाम को जाना कहीं कोई ईद न कर ले अभी रमजान बाकी है .. हुस्न -ऐ-मुजसिम हो या सांवली सी सूरत …!! इश्क़ अगर रूह से हो तो हर रूप बा-कमाल दिखता है …!! तेरी सादगी का हुस्न भी लाजवाब है मुझे नाज़ है के तू मेरा इंतखाब हाय. हसरत हैं सिर्फ तुम्हे पाने की , और कोई ख़्वाहिश नहीं इस दीवाने की , शिक़वा मुझे तुमसे नहीं खुद से है , क्या ज़रूरत थी तुम्हे इतना खूबसूरत बनाने की. दुपट्टा क्या रख लिया सर पर वो दुल्हन सी नज़र आने लगी उनकी तो अदा होगी अपनी जान जाने लगी. कैसी थी वो रात कुछ कह सकता नहीं मैं चाहूँ कहना तो बयां कर सकता नहीं मैं , दुल्हन बन के मेरी जब वो मेरी बाँहों में आयी थी, सेज सजी थी फूलों की पर उस ने महकाई थी. बादलों में छुप रहा है चाँद क्यों अपने हुस्न की शोखियों से पूछ लो चांदनी पड़ी हुई है मंद क्यों अपनी ही किसी अदा से पूछ लो. नज़र इस हुस्न पर ठहरे तो आखिर किस तरह ठहरे कभी जो फूल बन जाये कभी रुखसार हो जाये. उफ़ वो संगेमरमर से तराशा हुआ शफ़्फ़ाफ़ बदन देखने वाले जिसे ताज महल कहते हैं. ऊपर वाला ऐसी टीचर सबको दे, पड़ें जोक न. 5 पति-पत्नियों का महायुद्ध अन्दाज-ए-तूंफा पर बेहतरीन शायरियां