लहरों को शांत देख कर ये न समझना की समंदर में रवानी नहीं है.. जब भी उठेंगे तूफान बन के उठेंगे.. अभी उठने की ठानी नहीं है … साथी तो मुझे सुख में चाहिए….. दुःख में तो मै अकेलi ही काफी हूँ………!!!!!!! जिन्दा रहो जब तक, लोग कमियां ही निकालते हैं , मरने के बाद जाने कहाँ से इतनी अच्छाइयां ढूंढ लाते हैं। मैने सीखा है इन पत्थर की मुर्तीयों से, भगवान बनने से पहले पत्थर बनना जरुरी है… उठाना खुद ही पड़ता है थका टुटा बदन अपना। की जब तक साँसे चलती है कन्धा कोई नही देता। मुस्कुराना तो मेरी शख्सियत का एक हिस्सा है दोस्तों, तुम मुझे खुश समझ कर दुआओ में भूल मत जाना… ये दिन जब थका देता हैं… वो शाम को फ़ोन कॉल पे तेरी मीठी आवाज़… फिज़ाओं की तरह… मेरे सारे थकान को उड़ा ले जाती हैं… “माँ” थाली हैं… माँ के हाथों से बनी रोटियाँ नहीं बिस्तर हैं… माँ की नर्म गोदी नहीं…. देखे जो बुरे दिन तो ये बात समझ आई, इस दौर में यारों का औकात से रिश्ता है।।। जिस के होने से मैं खुद को मुक्कमल मानता हूँ मेरे रब के बाद मैं बस मेरी माँ को जानता हूँ !!! कुछ लोग बडे होने के वहम में मर गये… और जो लोग बडे थे वो अहम में मर गये. सिलसिला ज़ख्म ज़ख्म जारी है -अख़्तर नाज़्मी अमा मिया, ज़रा गुटखा थूककर हंस भी लीजिए गरीबों की लाचारी दर्शाती शायरियां