माँगी थी एक बार दुआ हम ने मौत की शर्मिंदा आज तक हैं मियाँ ज़िंदगी से हम. मैं क्या करूँ मिरे क़ातिल न चाहने पर भी तिरे लिए मिरे दिल से दुआ निकलती है. मैं ज़िंदगी की दुआ माँगने लगा हूँ बहुत जो हो सके तो दुआओं को बे-असर कर दे. मरज़-ए-इश्क़ जिसे हो उसे क्या याद रहे न दवा याद रहे और न दुआ याद रहे. मुझे ज़िंदगी की दुआ देने वाले हँसी आ रही है तिरी सादगी पर. न चारागर की ज़रूरत न कुछ दवा की है दुआ को हाथ उठाओ कि ग़म की रात कटे. नाकाम हैं असर से दुआएँ दुआ से हम मजबूर हैं कि लड़ नहीं सकते ख़ुदा से हम. आधी से ज़ियादा शब-ए-ग़म काट चुका हूँ अब भी अगर आ जाओ तो ये रात बड़ी है. अब इन हुदूद में लाया है इंतिज़ार मुझे वो आ भी जाएँ तो आए न ऐतबार मुझे. अब जो पत्थर है आदमी था कभी इस को कहते हैं इंतिज़ार मियाँ. अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहाँ शाम आ गई है लौट के घर जाएँ हम तो क्या. अंदाज़ हू-ब-हू तिरी आवाज़-ए-पा का था देखा निकल के घर से तो झोंका हवा का था. हैराँ हूँ इस क़दर कि शब-ए-वस्ल भी मुझे तू सामने है और तिरा इंतिज़ार है. हमें भी आज ही करना था इंतिज़ार उस का उसे भी आज ही सब वादे भूल जाने थे. राजनीति वाले जोक्स परेश रावल को समर्पित शरियाँ कामयाबी के लिए शायरियां