कई त्योहारों और धार्मिक महत्वों के कारण भारत जाना जाता है वही चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी के रूप में जाना जाता है। पूरे उत्तर भारत में इस दिन मां शीतला की आराधना की जाती है। उन्हें बासे खाने का भोग लगाया जाता है। इस कारण शीतला अष्टमी को बसौड़ा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन अधिकतर स्थानों पर मां शीतला को बासी हलवा पूरी का भोग लगाया जाता है। इस बार शीतला अष्टमी 4 अप्रैल 2021 को पड़ रही है। जानते हैं इस दिन से संबंधित विशेष बातें... शीतला माता को लेकर कहा जाता है कि उनको ठंडी चीजें बहुत पसंद होती हैं, इसलिए उनके भोग को एक दिन पहले सप्तमी को ही तैयार कर लिया जाता है तथा उन्हें ठंडा भोग लगाया जाता है। प्रसाद के रूप में भी लोग अष्टमी वाले दिन बासा भोजन ही खाते हैं। ये भी प्रथा है कि बसौड़ा अष्टमी का दिन बासा खाना खाने के लिए अंतिम दिन होता है क्योंकि इस दिन से ही ग्रीष्म ऋतु का आरम्भ हो जाता है। इसके पश्चात् गर्मी के कारण खाना अधिक देर नहीं टिकता, खराब होने लगता है। प्रथा है कि जो महिलाएं शीतला अष्टमी के दिन उपवास रखती हैं, उनके परिवार के सदस्यों एवं बच्चों को चेचक, खसरा, किसी गंभीर तरह का बुखार, आंखों के रोग तथा ठंड से होने वाली कई दिक्कतें नहीं होतीं। माता शीतला परिवार को इन बीमारियों से बचाती हैं। इसके अतिरिक्त माता की विधिवत पूजा करने व उपवास रखने से निर्धनता दूर होती है। अष्टमी के दिन प्रातः स्नान कर मां शीतला के समक्ष उपवास का संकल्प लें। इसके पश्चात् उन्हें रोलीए,अक्षत, जल, पुष्प, वस्त्र, दक्षिणा तथा प्रसाद चढ़ाएं। इसके पश्चात् शीतला स्त्रोत का पाठ करें। व्रत कथा पढ़े तथा आरती करें। तत्पश्चात क्षमायाचना करें तथा माता से परिवार की रक्षा की प्रार्थना करें। तेग गुरु बहादुर सिंह ने 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुगलों के विरुद्ध लड़ा था युद्ध आज है श्री गुरु अंगद देव जी की 517 वीं जयंती, जानिए सिखों के दूसरे गुरु के बारे में 5 दुर्लभ तथ्य आखिर क्यों बसौड़े के दिन खाया जाता है बासा भोजन? जानिए धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व