लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में कांवड़ यात्रा के सुचारू और व्यवस्थित संचालन को सुनिश्चित करने के लिए एक आदेश जारी किया है, जिसके अनुसार कांवड़ियों को भोजन परोसने वाले भोजनालयों और खाद्य ठेलों पर अपने मालिकों के नाम प्रमुखता से प्रदर्शित करने होंगे। इसका उद्देश्य तीर्थयात्रियों के बीच किसी भी तरह की उलझन को रोकना और सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने वाले संभावित आरोपों को कम करना है। एक तरफ जहाँ समाजवादी पार्टी (सपा), कांग्रेस जैसे विपक्षी दल इसका खुलकर विरोध कर रहे हैं। वहीं, इस्लामिक संगठन ऑल इंडिया मुस्लिम जमात ने इस फैसले का समर्थन किया है। ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के प्रमुख मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने कहा है कि कांवड़ यात्रा के रास्ते पर ढाबा संचालकों, फल विक्रेताओं और अन्य स्टॉल मालिकों के लिए प्रशासन ने जो एडवाइजरी जारी कि है उस पर राजनीति नहीं की जानी चाहिए. उन्होंने कहा है कि ये निर्देश कानून व्यवस्था के लिए है, चूँकि यह एक धार्मिक यात्रा है और प्रशासन ने यह व्यवस्था इसलिए लागू की है, ताकि इसमें हिंदू-मुस्लिम विवाद न हो. इस बीच एक सुन्नी मुस्लिम महिला ने इस कदम का समर्थन किया है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में महिला कह रही हैं कि, "हम सुन्नी और बरेलवी सच्चे मुस्लिम हैं; ये सब काम शिया करते हैं। यदि आप उनसे एक गिलास पानी मांगेंगे तो वो आपको देने से पहले उसमें थूक देंगे। मैं इस बर्ताव को स्वीकार नहीं करती और इसलिए योगी सरकार के इस कदम का स्वागत करती हूं।" वीडियो के अनुसार, जब एक पत्रकार ने महिला से सवाल किया कि क्या सचमुच कई विक्रेता भोजन और फलों पर थूकते हैं, तो महिला ने हाँ में सिर हिलाया। बता दें कि, सबसे पहले मुजफ्फरनगर जिला प्रशासन ने एक आदेश जारी करते हुए कहा है कि कांवड़ यात्रा के दौरान होटल, ढाबा और खाने-पीने की दुकानों पर मालिक और संचालक का नाम प्रदर्शित करना अनिवार्य होगा। इस निर्देश की कई इस्लामवादियों द्वारा पक्षपातपूर्ण और भेदभावपूर्ण बताते हुए आलोचना की गई है, जबकि स्थानीय प्रशासन ने इसमें मुसलमानों या किसी गैर-हिंदू समुदाय का विशेष रूप से जिक्र नहीं किया है। मुजफ्फरनगर के SSP ने स्पष्ट किया कि कांवड़िये किसी से भी फल और अन्य सामान खरीदने के लिए स्वतंत्र हैं, तथा विक्रेता का नाम प्रदर्शित करने का आदेश सभी पर लागू होता है, सिर्फ मुसलमानों पर नहीं, जैसा कि कुछ आलोचक दावा कर रहे हैं। दरअसल, ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जहां मुस्लिम स्वामित्व वाली दुकानों ने हिंदू नामों का इस्तेमाल करके यह भ्रम पैदा किया कि वे हिंदुओं के स्वामित्व वाली हैं और हिंदुओं द्वारा चलाई जाती हैं। UPI के माध्यम से भुगतान करने पर, उपयोगकर्ता का वास्तविक नाम सामने आता है, जिसमे पता चलता है कि ये दुकानें मुसलमानों की हैं। इससे लोगों में चिंता पैदा हुई है कि ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए नकली हिंदू नामों का उपयोग क्यों किया जा रहा है ? वैसे गौर करें तो ये सभी पर लागू होता है, जैसे मुसलमान केवल हलाल मांस खाते हैं, अगर कोई हिन्दू, मुस्लिम नाम से दूकान खोलकर उन्हें झटका मांस या फिर सूअर का मांस परोस दे, तो ये उनके साथ भी गलत होगा। वहीं, जैन समुदाय प्याज़ लहसुन से परहेज करता है, अगर उन्हें जैन भोजन के नाम पर कुछ और परोस दिया जाए, तो ये उनकी आस्था को ठेस पहुंचाने वाला होगा। ऐसी में प्रशासन का आदेश सही मालूम पड़ता है और फिर जब कोई गलत काम नहीं कर रहे तो पहचान छिपाने की जरुरत ही क्यों है ? इसके अतिरिक्त, विक्रेताओं द्वारा भोजन पर थूकना, चाटना और यहां तक कि पेशाब करने जैसे परेशान करने वाले व्यवहारों को दर्शाने वाले वायरल वीडियो ने अविश्वास और आक्रोश को और बढ़ा दिया है। यूपी प्रशासन के इस आदेश का उद्देश्य ऐसी गतिविधियों को रोकना है जो कांवड़ियों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकती हैं, जिससे हिंसा भड़कने के भी आसार हैं। त्योहारों में कोई अनहोनी ना हो, इसलिए एहतियातन ये आदेश जारी किया गया है। हम हलाल सर्टिफिकेट देखकर ही सामान खरीदेंगे, लेकिन कांवड़िए दुकानदार का नाम भी नहीं जान सकते ! ये दोहरा मापदंड क्यों ? कश्मीर में आतंकियों के कितने मददगार ? दहशतगर्दों को पनाह देने वाले शौकत-सफ़दर सहित 4 गिरफ्तार हिन्द महासागर में चीन को टक्कर देने की तैयारी, लक्षद्वीप में दो मिलिट्री एयरफील्ड बनाने को केंद्र ने दी मंजूरी