बसपा और शिरोमणि अकाली दल के गठबंधन के साथ अब अकाली दल यूपी में अपनी राजनैतिक संभावनाएं तलाशने लग गए है। अगर मायावती के साथ यूपी में भी अकाली दल की राजनैतिक गुणा-भाग ठीक बैठी तो यूपी के तराई क्षेत्रों सहित प्रदेश की अन्य सिख और पंजाबी बाहुल्य सीटों पर अकाली दल चुनाव लड़ पाएंगे। शिरोमणि अकाली दल के मुखिया सुखबीर सिंह बादल उत्तर प्रदेश में इससे पहले भी चुनाव लड़ने की अपनी मंशा जाहिर कर चुके हैं। क्योंकि इस बार पंजाब में BJP और अकाली का 25 साल पुराना गठबंधन टूट गया है। ऐसे में BSP और अकाली दल यूपी में इसको नई राजनैतिक संभावना के तौर पर भी देख रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी और शिरोमणि अकाली दल के गठबंधन को सिर्फ पंजाब तक देखना यूपी के आगामी चुनावों के परिदृश्य में कम आंकने जैसा ही है। जंहा इस बात का पता चला है कि बहुजन समाज पार्टी और शिरोमणि अकाली दल की अंदरूनी हुई बातचीत में, यूपी के सिख और पंजाबी बाहुल्य सीटों पर अकाली दल को कुछ सीटें देकर चुनाव लड़ाया जानें वाला है। इनमें सबसे अधिक संभावनाएं यूपी के सिख बहुल इलाके शाहजहांपुर, पीलीभीत और कुछ भाग लखीमपुर खीरी का भी शामिल है। जिसके अतिरिक्त बरेली सहित आसपास के क्षेत्र शामिल हैं। इनमें से कई जिलों की सीटों पर 2007 को छोड़ दिया जाए तो बहुजन समाज पार्टी जीती ही नहीं है। ऐसे में अकाली दल को सीट देने से कुछ सीटें मिलने की संभावना बढ़ जाती हैं। 2019 में आम चुनावों के दौरान शिरोमणि अकाली दल के मुखिया सुखबीर बादल ने यूपी में चुनाव लड़ने की मंशा भी जाहिर की थी। दरअसल यूपी के तकरीबन 44 विधानसभा सीटों पर सिखों और पंजाबियों का आंकड़ा निर्णायक वोटरों के तौर पर मानी जाती है। शिरोमणि अकाली दल के एक नेता ने कहा कि सिखों के और पंजाबियों के इन क्षेत्रों में कार्य करने वाले स्थानीय लोग भी उनके कहने पर वोट दे रहे हैं। इस कारण से इन सीटों पर सिखों और पंजाबियों का न सिर्फ अपना वोट बैंक है बल्कि उनके कहने पर वोट फीसद बढ़ता है। उक्त नेता का कहना है शिरोमणि अकाली दल यूपी में चुनाव लड़ेगी या नहीं लड़ेगी यह तो अकाली दल का आलाकमान और BSP सुप्रीमो मायावती के साथ तय करने वाले है, लेकिन शिरोमणि अकाली दल के लिए उत्तर प्रदेश में बहुत संभावनाएं हैं। पंजाब में टूटे अकाली और बीजेपी गठबंधन का असर दिखेगा उत्तर प्रदेश में कभी यूपी में सिखों और पंजाबियों को कांग्रेस का वोट बैंक कहा जाता था, लेकिन 1984 की घटना के उपरांत पंजाब से तराई इलाके में आकर बसे सिखों का भरोसा शुरुआत से ही अकाली दल के साथ जुड़ा हुआ है। चूंकि पंजाब में अकाली और बीजेपी का गठबंधन था इसलिए यूपी में जिसका लाभ बीजेपी को सिखों और पंजाबियों के बाहुल्य वाली सीटों पर मिलता रहा। इस बार तस्वीर बदली हुई है। पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव में अकाली और भाजपा का 25 साल पुराना नाता टूट चुका है। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है इसका असर उत्तर प्रदेश में भी दिखेगा। समाजवादी पार्टी भी सिखों के लिए अकाली नेता को लाई थी यूपी कभी अकाली दल के कद्दावर नेताओं में शामिल पूर्व सांसद बलवंत सिंह रामूवालिया पर समाजवादी पार्टी ने भी दांव लगाया। बलवंत सिंह रामूवालिया यूपी गवर्नमेंट में कैबिनेट मंत्री बनाए जा चुके है। बलवंत सिंह रामूवालिया ने यूपी के तराई और सिख तथा पंजाबी बाहुल्य इलाकों में समाजवादी पार्टी के लिए अधिक से अधिक वोटों को अपनी ओर मोड़ने के लिए अभियान भी चलाया। इसी तरीके से BSP ने यूपी के तराई इलाके में खासकर पीलीभीत, लखीमपुर और शाहजहांपुर के इलाके में पंजाबी नेता रोमी साहनी पर दांव लगाया। इसी इलाके में बड़े किसान नेता और सांसद मेनका गांधी के चचेरे भाई वीएम सिंह भी सिखों के बड़े नेता के तौर पर उभरे। आंध्र प्रदेश में 30 जून तक बढ़ाया गया कोरोना कर्फ्यू, लेकिन साथ ही मिली ये छूट डॉक्टरों के साथ हो रही हिंसा के खिलाफ IMA का देशव्यापी विरोध प्रदर्शन, केंद्र से की यह मांग राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग करे बंगाल हिंसा और पलायन की जांच - कोलकाता हाई कोर्ट