गणेश चतुर्थी पर क्यों नहीं पहले जैसा उत्साह!

देशभर में भगवान श्री गणेश जी की स्थापना हुई। ऐसे में ही कहीं अबीर, गुलाल उड़ा। विशेषकर महाराष्ट्र में श्री गणेशोत्सव का पर्व उल्लास के साथ मनाया गया। इसी के साथ देश की संस्कृति के विविध रंग नज़र आए। साथ ही देश का सांस्कृतिक ताना - बाना फिर से निखरकर सामने आया। इस पर्व ने एक बार फिर यह साबित किया कि भले ही हम कितने ही आधुनिक हो जाऐं और हमें अपनी जड़ों से कितना ही काटने का प्रयास किया जाए हम अपनी जड़ों से आज भी जुड़े हुए हैं।

हालांकि अब श्री गणेशोत्सव को लेकर वैसी बात नज़र नहीं आती जो इसके प्रारंभ से जुड़ी थी। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इसे राष्ट्र जागरण का पर्व कहकर प्रारंभ किया था। इस उत्सव में जहां एकीकरण की बात थी वहीं अब सभी अपने - अपने तक सीमित हो गए हैं। अब तो लगभग हर दो कदम की दूरी पर एक गणेश मंडल होता है तो दूसरी ओर एकल परिवारों में दंपति ही श्री गणेश स्थापना कर देते हैं। बच्चों को संयुक्त परिवार का आनंद नहीं मिल पाता है। अधिकांश लोगों का रोजगार निजी क्षेत्र से जुड़े होने के कारण अब लोग सुबह - शाम होने वाली श्री गणपति बप्पा की सामूहिक आरती का आनंद नहीं ले पाते हैं।

ऐसे में श्री गणेश जी के पूजन का क्रम भी काफी सिमट गया है। श्री गणेशोत्सव के तहत श्री गणपति बप्पा की स्थापना तो शानदार तरीके से हो जाती है मगर 10 दिवसीय आयोजन में श्री गणेश पांडालों में केवल सुबह शाम की आरती और इक्का दुक्का आयोजन ही होते हैं। दरअसल अब स्कूली बच्चों को वह समय नहीं मिल पाता है। जिसमें वे श्री गणेशोत्सव के आयोजन का आनंद ले पाऐं। अब अधिकांश बच्चे कोचिंग पर निर्भर हो जाते हैं ऐसे में दिनभर स्कूल के बाद शाम को भी वे विद्याअध्ययन में व्यस्त हो जाते हैं। जिसके कारण अधिकांश गणेश मंडल केवल चुनिंदा आयोजन करते हैं।

'लव गडकरी'

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