अनाथ बच्चों की मां कही के नाम से पहचानी जाने वाली और सामाजिक कार्यकर्ता और पद्मश्री पुरस्कार विजेता सिंधुताई सपकाल का देहांत हो गया है। उन्होंने मंगलवार को 73 वर्ष की आयु में इस दुनिया को अलविदा बोल दिया है। सिंधु सपकाल को हमेशा ही सिंधुताई या मां कहकर बुलाया जाता था। उन्होंने अपना सारा जीवन अनाथ बच्चों की जिंदगी संवारने में अर्पण कर दिया। 1400 से अधिक अनाथ बच्चों का पालन-पोषण भी कर चुकी है। उत्कृष्ठ समाज सेवा के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री (Padma Shri) से सम्मानित किया जा चुका है। सिंधुताई सपकाल को लोग प्यार से 'अनाथों की मां बुलाते थे। सिंधुताई सेप्टीसीमिया से पीड़ित थीं और बीते डेढ़ माह से उनका उपचार पुणे के गैलेक्सी हॉस्पिटल में किया जा रहा था। बीते वर्ष उन्हें पद्मश्री से सम्मानित भी किया जा चुका है। उन्होंने मंगलवार शाम 8.30 बजे अंतिम सांस ली। आज पुणे में पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाने वाला है। ऐसा था सिंधुताई का जीवन: महाराष्ट्र के वर्धा में एक गरीब परिवार में सिंधुताई का जन्म हुआ और बेटी होने की वजह से लंबे समय तक भेदभाव का सामना करना पड़ा था। सिंधुताई की जिंदगी एक ऐसे बच्चे के तौर पर शुरू हुई थी, जिसकी किसी को आवश्यकता ही नहीं थी। सिंधुताई की मां उनके स्कूल जाने के विरोध में हमेशा से ही रहीं। हालांकि उनके पिता चाहते थे कि बेटी पढ़े और आगे बढ़े। लिहाजा, जब वह 12 वर्ष की थीं, तब उनका विवाह करवा दिया गया था। उनके पति उनसे तकरीबन 20 वर्ष बड़े थे। सिंधुताई को पति गालियां देता था और मारपीट भी करता था। जब वह 9 माह की गर्भवती थीं तो उसने उन्हें छोड़ दिया। उन्हें गौशाला में अपनी बच्ची को जन्म देना पड़ा। वो बताती हैं कि उन्होंने अपने हाथ से अपनी नाल काटी थी। बॉलीवुड पर छाया कोरोना का कहर, करीना के बाद सोनू निगम भी पॉजिटिव मोलनुपिरवीर, भारत में शुरू की गई कोविड एंटीवायरल दवा जम्मू कश्मीर में सेना को बड़ी सफलता, एनकाउंटर में लश्कर के दो आतंकी ढेर