स्कंद षष्ठी हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र भगवान स्कन्द (कार्तिकेय) की पूजा के लिए समर्पित है। यह पर्व विशेषकर भारत के विभिन्न हिस्सों में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इसे कुमार षष्ठी भी कहा जाता है और सूर्यदेव की उपासना का दिन भी माना जाता है। स्कंद षष्ठी का महत्व स्कंद षष्ठी का त्योहार भगवान स्कन्द की आराधना के लिए है, जो युद्ध और विजय के देवता माने जाते हैं। भगवान स्कन्द, जिन्हें कार्तिकेय, कुमार या मुरुगन भी कहा जाता है, भगवान शिव और देवी पार्वती के छठे पुत्र हैं। यह व्रत विशेष रूप से उनके भक्तों के लिए है जो उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए व्रत करते हैं। इस दिन सूर्यदेव की पूजा भी की जाती है, क्योंकि मान्यता है कि सूर्यदेव की उपासना से व्यक्ति को रोगों से मुक्ति, स्वास्थ्य, और समृद्धि प्राप्त होती है। स्कंद षष्ठी का व्रत और पूजा का आयोजन खुशी और समृद्धि की प्राप्ति के लिए किया जाता है। स्कंद षष्ठी की तिथि इस वर्ष स्कंद षष्ठी भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाएगी। तिथि की शुरुआत: 8 सितंबर, रात 7:58 बजे तिथि की समाप्ति: 9 सितंबर, रात 9:53 बजे उदयातिथि के अनुसार, इस पर्व को 9 सितंबर को मनाना उपयुक्त होगा। स्कंद षष्ठी पूजा विधि सुबह जल्दी उठें और शुद्ध जल से स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र पहनें। एक साफ स्थान पर भगवान कार्तिकेय की मूर्ति या प्रतिमा स्थापित करें। मूर्ति के सामने एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। दीपक और अगरबत्ती जलाएं। भगवान को फल और फूल अर्पित करें, विशेषकर कमल का फूल। मूर्ति पर रोली से तिलक करें। प्रसाद अर्पित करें, जिसमें मोदक, फल, दूध शामिल कर सकते हैं। पूजा के बाद स्कंद षष्ठी कथा पढ़ें या सुनें। पूजा समाप्त होने पर भगवान की आरती करें और प्रसाद ग्रहण करें। स्कंद षष्ठी की पूजा से सुख, समृद्धि, और सफलता प्राप्त करने की मान्यता है। इस दिन भगवान कार्तिकेय की उपासना से सभी प्रकार की समस्याओं और रोगों से मुक्ति मिलती है। गुरु के वक्री होने से चमकेगी इन राशियों की किस्मत, 2025 तक होगा फायदा पितृपक्ष से पहले आपको मिल रहे हैं ये संकेत, तो समझ जाइए पितृ हैं अतृप्त आखिर क्यों रात के समय नहीं करते हैं अंतिम संस्कार? यहाँ जानिए