तो इसलिए हिन्दू धर्म में की जाती है मूर्ति पूजा

आज से नहीं बल्कि काफी समय पहले से ही हिन्दू धर्म में मूर्ति पूजा का महत्व रहा है और यह महत्व आज भी पूरी विधि-विधान के साथ मनाया जाता है। लेकिन ऐसा क्या कारण है जो हिन्दू धर्म में ही मूर्ति पूजा को इतना महत्व दिया जाता है? दरअसल इसके पीछे भी एक रहस्य विद्यमान है, जिसे बहुत ही कम लोग जानते हैं। आज हम आपसे हिन्दू धर्म में मूर्ति पूजा से संबधित एक ऐसे ही रहस्य के बारे में चर्चा करने वाले है, जिससे आप भी यह जान जाओगे कि आखिर हिन्दू धर्म में मूर्ति पूजा का इतना महत्व क्यों है?

मूर्ति पूजा का रहस्य-  एक बार स्वामी विवेकानंद को एक राजा ने अपने भवन में बुलाया और बोला, “तुम हिन्दू लोग मूर्ति की पूजा क्यूँ करते हो! मिट्टी, पीतल, पत्थर की मूर्ति का.! पर मैं ये सब नही मानता। ये तो केवल एक पदार्थ है।” उस राजा के सिंहासन के पीछे किसी आदमी की तस्वीर लगी थी। विवेकानंद जी कि नजर उस तस्वीर पर पड़ी। विवेकानंद जी ने राजा से पूछा, राजा जी, ये तस्वीर किसकी है? राजा बोला, मेरे पिताजी की।

स्वामी जी बोले, उस तस्वीर को अपने हाथ में लीजिये। राजा तस्वीर को हाथ मे ले लेता है।

स्वामी जी राजा से : अब आप उस तस्वीर पर थूकिए।

राजा : ये आप क्या बोल रहे हैं स्वामी जी…?

स्वामी जी : मैंने कहा उस तस्वीर पर थूकिए..!

राजा (क्रोध से) : स्वामी जी, आप होश मे तो हैं ना? मैं ये काम नही कर सकता।

स्वामी जी बोले, क्यों? ये तस्वीर तो केवल एक कागज का टुकड़ा है, और जिस पर कूछ रंग लगा है। इसमे ना तो जान है, ना आवाज, ना तो ये सुन सकता है, और ना ही कूछ बोल सकता है। और स्वामी जी बोलते गए, इसमें ना ही हड्डी है और ना प्राण। फिर भी आप इस पर कभी थूक नही सकते। क्योंकि आप इसमे अपने पिता का स्वरूप देखते हो। और आप इस तस्वीर का अनादर करना अपने पिता का अनादर करना ही समझते हो।

थोड़े मौन के बाद स्वामी जी ने आगे कहा, वैसे ही, हम हिंदू भी उन पत्थर, मिट्टी, या धातु की पूजा भगवान का स्वरूप मान कर करते हैं। भगवान तो कण-कण मे है, पर एक आधार मानने के लिए और मन को एकाग्र करने के लिए हम मूर्ति पूजा करते हैं। स्वामी जी की बात सुनकर राजा ने स्वामी जी के चरणों में गिर कर क्षमा माँगी।

 

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