छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अलावा इस पर्व का सामजिक तथा सांस्कृतिक महत्व भी है. इस व्रत के लिए न विशेष धन की आवश्यकता है न पुरोहित या गुरु के अभ्यर्थना की. जरूरत पड़ती है तो सामजिक सहयोग की. इस सहयोग और सेवा के लिए समाज-जन सहर्ष और कृतज्ञतापूर्वक प्रस्तुत रहते है. शास्त्रों की लकीरों से अलग यह पर्व जन सामान्य द्वारा अपने सांस्कृतिक रीति-रिवाजों के रंगों से सजा है. इसके केंद्र में वेद, पुराण जैसे धर्मग्रन्थ न होकर किसान और ग्रामीण जीवन है. भक्ति और आध्यात्म से परिपूर्ण इस पर्व में बाँस से बने सूप, टोकरी, मिट्टी के बर्तन,गन्ने का रस, गुड़, चावल और गेहूँ से निर्मित प्रसाद और सुमधुर लोकगीतों का समावेश होता है जिनकी मिठास से यह पर्व सादगी और पवित्रता का उत्कर्ष लगता है. इस उत्सव के लिए लोग स्वयं आगे होकर सभी कार्य सम्पादित करते हैं. चाहे नगरों की सफाई हो या व्रतियों के गुजरने वाले रास्तों का प्रबन्धन हो,या फिर तालाब या नदी किनारे अर्घ्य दान की उपयुक्त व्यवस्था की बात हो, इन सबके लिए समाज सरकारी सहायता की बाट नहीं जोहता. इसीलिए यह पर्व सामान्य और गरीब जनता के अपने दैनिक जीवन की मुश्किलों को भुलाकर सेवा-भाव और भक्ति-भाव से किये गये सामूहिक कर्म का विराट और भव्य प्रदर्शन है. छठ पूजा महत्व छठ के लिए रेलवे ने चलाई स्पेशल ट्रेनें छठ का दूसरा दिनः अस्ताचल सूर्य को महिलाऐं देंगी अध्र्य भोजपुरी सिनेमा में देखने को मिला छठ पर्व का उत्सव